Sharanagati

Collected words from talks of Swami Tirtha




(श्री भ .क .तीर्थ महाराज के व्याख्यान से उद्धृत , भाग-२ , सितम्बर ७ , २००६ सोफिया)

याद रखें : शरणागति के प्रमुख दो तत्व हैं: भक्ति के लिए जो अनुकूल है ,वह करें और जो प्रतिकूल है,उसका त्याग करें | अगले दो व्यक्तिपरक कर्तव्य हैं. ये हैं विनम्रता और आत्म समर्पण |. वे व्यक्तिपरक अभ्यास हैं , क्योंकि यह हमारे अपना हिस्सा है| इन गुणों का हमें अभ्यास करना है, हम को प्राप्त करना है |
विनम्र होना – मुझे लगता है कि यह स्पष्ट है(स्वाभाविक है) लेकिन हम उचित रूप से विनम्र होना चाहिए| यदि आप मूर्खों के एक समूह में विनम्र हैं, तो आपको मूर्ख बनाया जाएगा. यदि आप धोखेबाजों के समूह में विनम्र हैं, तो आप को धोखा दिया जाएगा. लेकिन अगर आप भक्तों के समूह में विनम्र हैं, तो आप भक्त हो जाएंगें . क्यों? क्योंकि मानव आत्मा एक क्रिस्टल की तरह है| किहीं परिस्थितियों में भी तुम क्रिस्टल को रखो यह उसी प्रभाव को ग्रहण कर जाएगा| एक शुद्ध, पारदर्शी क्रिस्टल लो| इसे दामोदर प्रभु के [1] हाथ में रखो|उसे अपने सीने के सामने रखें| यह शुद्ध सफेद ,उन से निकलती रोशनी को प्रतिबिंबित करेगा |माँ यशोदा के लिए वैसा ही क्रिस्टल दीजिए. इससे नीला प्रकाश प्रकाशित होगा | लेकिन अगर बहुत अंधेरा है, बहुत बुरा परिस्थितियों में आप क्रिस्टल रखते हैं तो , यह प्रतिबिंबित करेगा जो आसपास है |इसलिए अपनी विनम्रता के प्रति सावधान रहना चाहिए| एक कमजोर क्रिस्टल नहीं बनो, बुरी संवेदनाएं न ले, न केवल अच्छे , शुद्ध का चयन करें |

श्रीला श्रीधर महाराज द्वारा विनम्रता चर्चा: यदि एक चोर मंदिर में प्रवेश करता है और पूजा स्थल से दीपदान लेजाता है है, तो आपकी विनम्रता क्या है? क्या आप कहेगे : “हे प्रभु, यहाँ मंदिर की नकदी भी है, वह भी ले ले”? क्या यह उचित विनम्रता है? या फिर आप कहेंगे: “अरे, एक मिनट रुको, मैं तुम्हें पीटूँगा , अगर तुमने हमारे प्रभु को अशांत करने की कोशिश की !”

सिर्फ दिखाने भर के लिए कि यह एक नुस्खा नहीं है, यह हमेशा तैयार नुस्खा नहीं है, मैं तुम्हें विनम्रता के बारे में एक और कहानी बताता हूँ | एक बार एक वृद्ध भिक्षु थे , वे पूर्ण एकांत में रह रहे थे | एक छोटी सी झोपड़ी और केवल कुछ सामान,उनके पास था| जैसे एक छोटा बर्तन … बहुत कम चीज़ें | एक बार एक चोर , उसके घर से सब कुछ चुराने आया | वह आदमी, एक खच्चर की पीठ पर सब कुछ लाद रहा था ,तभी वृद्ध साधु वापस आ गए| वह मौके पर ही वह व्यक्ति पकड़ा गया | उन्होंने देखा कि झोपड़ी पहले ही खाली हो चुकी थी और सब कुछ जानवर की पीठ पर लाद दिया गया था| तभी उन्होंने देखा एक कुदाल,जो बाग में कंही छुपी हुई रखी थी | वृद्ध भिक्षु ने कहा: “एक मिनट, मेरे प्यारे, यह मेरा यंत्र है , इसे भी ले लो |”और उसे खच्चर की पीठ पर रख दिया | विनम्रता का यह स्तर था| इस प्रकार की विनम्रता से उन्होंने उस व्यक्ति को जीता| वह तुरंत समझ गया : “अरे ! मैंने एक महान संत को कष्ट दिया है!”. और मौके पर ही आत्मसमर्पण कर दिया |

दो कहानियाँ के बीच क्या अंतर है? पूर्व मामले में कोई मंदिर में अशांति देने की कोशिश करता है ,. बाद वाली में कोई केवल आप को परेशानी दे रहा है ,व्यक्तिगत रूप से |आप कृष्ण के लिए, मंदिर के लिए, मिशन के लिए लड़ सकते हैं | आप कृष्ण के हितों की रक्षा कर सकते हैं|आप एक बड़ी गलती करने से व्यक्ति को रोक सकते हैं| लेकिन कोई आप से कुछ लेने की कोशिश करता है, यह वास्तव में कृष्ण द्वारा किया जाता है| और अगर वो किसी के बारे में कुछ भूल गया है, आपको उसे याद दिलाना चाहिए: “अरे! मेरा अब भी इससे लगाव है. कृपया, यह भी ले ले! “क्योंकि मैं अपने कुदाल पर निर्भर नहीं रहना चाहता , बल्कि आप पर निर्भर रहना चाहता हूँ | मेरे भगवान!
अत:विनम्रता , असली विनम्रता का अभ्यास किया जाना चाहिए| इसलिए यह सुझाव दियागया hai है कि विनम्रता का अभ्यास संतों की संगत में किया जाना चाहिए|

आत्मसमर्पण का दूसरा व्यक्तिपरक हिस्सा ,शरणागति स्वयं – समर्पण है| एक प्रार्थना है: “हे! कृपया मुझे अपना बना लो | अपने ही दूसरे रूप में अपना लो | अपने दूसरे स्वरुप में !.” स्व का आत्म समर्पण उस स्तर पर प्रकट होता है ,जब में पूर्ण रूप से स्वयं को प्रभु को अर्पित कर देता हूँ | इसके बदले में ,वह भी मुझे स्वयं को दे देते हैं |
समर्पण सेवा के भाव का एक विशेष गुण है | आप घृणा के साथ फर्श साफ कर सकते हो और आप समर्पण भाव के साथ फर्श साफ कर सकते हो | यह केवल सेवा का प्रदर्शन नहीं है ,. यह गुण है कि आप इसे कैसे करते है| यदि यह आपका व्यवसाय है, तो आप पेशेवर क्लीनर हैं – तो आप इसे करते हैं, दिन भर … लेकिन आप केवल चार बजे की प्रतीक्षा कर रहे हैं ,आपको झाड़ू से छुटकारा मिलता है और आप इसके बारे में भूल जाते है !, तुम सिर्फ इसके बारे में भूल जाओ! लेकिन यदि आप एक भक्त हैं, तो आप क्या कृष्ण की सेवा ,किसी भी जगह में भूल सकते हो ? तो यह सिर्फ एक कर्तव्य प्रदर्शन नहीं है, यह इन्द्रियों से लीं होना भी नहीं है ,अपना ह्रदय और आत्मा इसके लिए दो | यह आत्म समर्पण है |

मुझे लगता है कि आप महसूस कर सकते हैं की यह एक बहुत व्यापक क्षेत्र है- प्राथमिक अभ्यास परम समर्पण तक पहुँचना ,पूर्ण समर्पण |. जब आप अपनी जिन्दगी ,अपने लिए नहीं सँभालते या रखते हैं ,जब आप पूरी तरह से कृष्ण के लिए अपने जीवन को समर्पित करते हैं |.

विनम्रता का अभ्यास इस प्रकार करें कि अपमान नहीं हो और आप दूसरों को परेशान नहीं करें| प्रै विनम्रता एक शो नहीं है, बल्कि यह क्रिया है|क्रिया शब्दों से अधिक जोर से बोलती हैं| आप एक दिन में सोलह बार माला जप कर कहते हैं, “हरे कृष्ण” लेकिन आप सेवा के लिए तैयार नहीं हैं? “आपका स्वागत है!”(बहुत खूब) और जब तुम मेहमानों के आने पर रोटी का एक टुकड़ा भी नहीं देते हो , देना आप एक गिलास पानी नहीं देते हो, आप कृष्ण को आमंत्रित करते हो : “आओ, आओ ” और जब वह आता है आप कुछ नहीं करते हैं |. महामंत्र निमंत्रण का संकेत है.|अपने अतिथियों को स्वीकार करने को तैयार रहो!

.(क्रमश:)

[1] दामोदर प्रभु , माँ यशोदा – सन्दर्भ : श्री भ.क.तीर्थ महाराज के शिष्य ,व्याख्यान के समय उपस्तिथ थे |



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