Sharanagati
Collected words from talks of Swami TirthaFeb
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( श्री भ.क. तीर्थ महाराज के व्याख्यान से उद्धृत ,६ सितम्बर ,२००६,सोफिया)
एक भक्त बाहरी जगत के लिए कितना उपयुक्त है? संभवत:बहुत ज्यादा नहीं| पर कोई बात नहीं| आप कुछ ज्यादा नहीं खोते| यदि आप भौतिक कंपनी खोते हैं तो आप विग्घ्न मात्र खोते हैं| किन्तु जब हम भक्तिपूर्ण समाज या संतसम व्यक्तियों की बात करते हैं तो वहां हम मित्र ढूंढ रहे होते हैं पर हमें सम्बन्धी मिलते हैं| अत:यह जुडाव अलग तरह का होना चाहिए,साधारण नहीं| यदि साथ बैठे हैं तो यह साधारण बैठक नहीं है,यह दैविक बैठक संगत होगी और याद रखें कि श्रीला मुनि महाराज ने आखिरी बार क्या कहा था ,जब एक बार महाप्रभु ने जैसे ही कीर्तन आरम्भ किया और बंद कर दिया था,”रुको रुको,एक मिनट ठहरो |कोई यहाँ है ,कौन हैवो ?”कोई खम्बे के पीछे छुप रहा था |उन्होंने कहा,’उसे यहाँ लाओ !उसकी उपस्तिथि से सारा वातावरण उथल पुतल हो रहा है| हालाँकि महाप्रभु एक दयालु अवतार माने जाते हैं|उन्होंने कहा.”इस व्यक्ति को बाहर निकालो!”वे दूसरों के प्रति करुनामय थे ,थी?!तुम उन्हें तंग न करो, ,अगर तुम यहाँ नहीं होना चाहते ,अगर तुम्हारा ह्रदय रस की थाप पर धड़कता नहीं है तो तुम बाहर जाओ!जल्दी ही सवाल समाप्त कर एक बार एक भक्त एक टीवी शो के लिए आमंत्रित किया गया | यह सीधा प्रसारण था | संवाददाता ने पूछा,”आपको नहीं लगता कि यदि आप इस तरह का व्यवहार करते हैं और इस पाठ का अनुसरण करते हैं तो आप थोड़े से …सनकी है,यदि सामान्य रूप से देखा जाए तो ?” यह एक साधारण सांस्कृतिक शो था और उसमे सब कुछ था ,तो सब लोग हँसते लगे और खुश हुए | लेकिन जब उत्तर आया: “ठीक है,मूर्खों के समाज में ही सामान्य व्यक्ति मूर्ख मना जाएगा,” तो रिपोर्टर के चेहरे पर मुस्कान तुरंत जम गयी | आप सोच कर देखिए यह सीधा प्रसारण था| मूर्खों के समाज में ही सामान्य व्यक्ति मूर्ख मना जाएगा और उन्होंने सवाल पूछने बंद कर दिए !लेकिन निश्चित रूप से अगर हम अगला कदम उठाते है,तो अभ्यासी से आप मास्टर डिग्री के स्तर पर आ जाते हैं आते हैं,और आपको कोई समस्या नहीं होगी और आप किसी भी समाज में ,किसी भी प्रकार के लोगों के समूह के लायक होंगे| आप को सभी के दिलों तक पहुँचने के लिए एक रास्ता मिल जाएगा | यह आचार्यों के लिए है| जब तक हम उस स्तर पर नहीं हैं ,तब तक हम अंतर देखते हैं,हम स्थितियों के बीच अंतर करते हैं लोग ..लेकिन एक मुख्य सिद्धांत का हम अनुसरण कर सकते हैं | सभी का उचित सम्मान करें | इसका क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि मैं आपका सम्मान करता हूँ नहीं, मैं आपका सम्मान करता हूँ ,लेकिन मेरी अपनी राय भी है |हो सकता है हम कई बिन्दुओं पर सहमत न हों,हो सकता है तुम्हारे विचार पूरी तरह से अलग हों है,पर जरा सोचिए ,जब आप एक संन्य ,भौतिकतावादी व्यक्ति से मिलते हैं|यदि आप एक उच्च स्तर पर हैं क्यूंकि आप का एक दैविक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण है,आप व्यक्ति का सम्मान करते हैं :”जी,आप बहुत अच्छे व्यक्ति हैं “ठीक?पर इसका मतलब यह नहीं है कि आप उन सभी सिद्धांतों का अनुसरण करते हैं,जिनका पालन वह व्यक्ति करता है–हो सकता है वे निम्न या अनुचित ही हों |अत:यह मत सोचना कि यदि कोई आपका सम्मान करता है तो वह आप का अनुकरण करेगा और सभी बिन्दुओं पर सहमत होगा | बात इतनी है कि *हमें* सम्मान करना चाहिए |लेकिनदूसरों को भी इस सम्मानपूर्ण परिस्तिथि के अतिरिक्त पूर्ण आत्मसमर्पण की आशा नहीं रखनी चाहिए |