Sharanagati
Collected words from talks of Swami TirthaJun
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(श्री भ .क .तीर्थ महाराज के व्याख्यान से उद्धृत , सोफिया )
“अगर फिर भी आपको लगता है कि आत्मा या जीवन के लक्षण, हमेशा जन्म लेते हैं और सदैव के लिए मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं ,तब भी आप के पास विलाप का कोई कारण नहीं है,ओ महाशस्त्रधारी! ” [*]
प्रश्न जिसकी चर्चा की गई है , वह है आत्मा की अनंतता , आत्मा की स्थिति. इस बातचीत के दौरान कृष्णा समझा रहे हैं,जीव आत्मा के विभिन्न पहलुओं को . इससे पहले उन्होंने कहा कि इस आत्मा को कोई नुकसान देना संभव नहीं है, यह जन्म नहीं लेती,यह मरती नहीं है – अनंत , हर जगह मौजूद है , अपरिवर्तीय है,यह अदृश्य, अचिन्त्य है और स्थिर है. तो शोक के लिए कोई कारण नहीं है . यहां तक कि अगर शरीर सीमित है, आत्मा तो सर्व परिपूर्ण है और फिर कृष्ण तो इस पंक्ति को कहते हैं : “यदि फिर भी आपको लगता है कि आत्मा हमेशा जन्म लेती है और हमेशा के लिए मर भी जाती है -तो यह सारा समय इन दो चरम सीमाओं के बीच घूमती रहती है – तो भी शोक का कोई कारण नहीं है . “यदि यह एक स्थायी नियम है -. कि जिस भी जीव का जन्म होता है और उसे मरना ही है , और यह नियम हमेशा के लिए है – तो वहाँ शोक करने का कोई कारण नहीं है. क्योंकि यह नियम है स्थायी , यह हमेशा ही रहा है, जो भी समाप्त हो गया है, यह फिर से होगा.
अगली पंक्ति में कहा गया है, जिसने जन्म लिया है,उसकी मृत्यु निश्चित है .और मृत्यु के पश्चात् जन्म लेना भी अनिवार्य है .अत: अपने कर्त्तव्य के अनिवार्य निर्वाह के लिए,शोक नहीं करो.
क्या तुमने जन्म ले लिया है? तब हमें निर्देशों के दूसरे भाग को लागु करना होगा .हमें प्रथम भाग पसंद है :अरे,हमने जन्म ले लिया है ! दूसरा भाग गले उतरना कठिन है : हमें मृत्यु का भी सामना करना है .लेकिन. जब तक हम सोचते हैं कि यह शारीरिक वास्तविकता ही असली वास्तविकता है तो वास्तव में मृत्यु का सामना करना दर्दनाक और भयानक है. क्योंकि वास्तव में हमारा शरीर हमारी मानसिक स्थितियों की अभिव्यक्ति है. जो तुमने चाहा, तुम्हें मिल गया – तो यह दूसरों का दोष नहीं है. लेकिन उन लोगों के लिए, जिन्हें अपनी आध्यात्मिक पहचान की तलाश है, इस सवाल को हल करना आसान है. सब कुछ जहां से लिया गया है वहीँ वापस करना है . भौतिक शरीर पदार्थ से है ,तो वापस पदार्थ को लौट जाएगी,. आत्मा परमात्मा से ली जाती है, वह वापस परमात्मा के पास लौट जाएगी. जीवन जीवन से आता है, चेतना चेतना से आती है, और प्यार , प्यार से आता है. यह अस्तित्व का सर्वोच्च समीकरण है.
जिसने जन्म लिया है,उसकी मृत्यु निश्चित है . पर मृत्यु के बाद जन्म लेना भी अनिवार्य है.इस प्रकार मृत्यु अंत नहीं है ,बल्कि स्थानांतरण है या अन्य अस्तित्व के स्तर के लिए द्वार है .निसंदेह एक प्रकार से यह अंत ही है ;पर यह एक आरम्भ भी है.निद्रा और जाग्रत चेतना की भांति . निद्रा से जाग्रत चेतना की ओर परिवर्तन है जाग्रति,ठीक है,और जाग्रत अवस्था से सुप्तावस्था की ओर- यह नीद में जाने की अवस्था है — यह क्रिया है,यह प्रक्रिया है .अवस्थाएँ हैं और संक्रमण हैं .कई लोगों के लिए जीवन जाग्रत चेतना की भांति है और कई के लिए मृत्यु निंद्रा,गहरी निद्रा की भांति है.जीवन से मृत्यु तक का पारगमन केसे होता है?यह मरण है.मरण गहन निद्रा की भांति है.ठीक?पर कहानी का केवल एक भाग लेते हैं , दूसरा भग क्या ही- मृत्यु से जीवन की ओर ? इसे क्या कहते हैं?जन्म या पुनर्जन्म ,हम कह सकते हैं की यह जाग्रति है.
अत:शोक मत करो ! तुम जिओ,मरो,शोक न करो.क्यूंकि अमरत्व सदेव है.यह हमारा मित्र है,सुमित्र.
“अत:अपने कर्तव्य के अपरिहार्य निर्वाह में शोक न करो ” अर्जुन एक योद्धा था और उसे जीवन और मृत्यु का सामना करना पड़ा. अत: यह समस्या उसके लिए बहुत कठिन और उग्र थी :ऐसा केसे होगा? कौन मरेगा ,कौन जिएगा ?!जीवन क्या है,मृत्यु क्या है?अधिकतर हम योद्धा नहीं हैं. हो सकता है कोई सड़क-छाप योद्धा हो, दूसरे कोई कम्पुटर पर युद्धविद्या के खेल /गेम खेल रहे हों.पर जीवन और मृत्यु की समस्या का सामना करना कठिन है.कम्पूटर के सामने बेठने पर तुम चेतना के एक विशेष स्तर पर पहुच जाते हो– रिक्तता. यह जाग्रत नहीं है,स्वप्न नहीं है- केवल खाली है,कुछ नहीं है.हम जीने और मारने की असली समस्या का सामना नहीं कर सकते.जीवन और मरण.
लेकिन रहस्यवादी अध्यापक, गुरु, कभी कभी कहते हैं: “ओह, तुम्हारी जाग्रत चेतना गहरी नींद के समान है , मेरे प्रिय! तुम्हें लगता है कि तुम जाग रहे हो , लेकिन.वास्तव में आप गहरी नींद में हैं “इसलिए चेतना के जाग्रत स्तर से भी हमें चेतना के उच्चतर आध्यात्मिक स्तर पर होना चाहिए .
कौन हमारी सहायता करेगा? नींद के लिए अलार्म घड़ी की मदद से आप एक अलग चेतना में आ पाएंगें. ध्वनि से यह तुम्हारी चेतना बदल देगी. उसी तरह, सौभाग्य से हमारी व्यक्तिगतअलार्म घड़ियां हैं , जो आध्यात्मिक ध्वनि से हमारी चेतना को जगा देती हैं.यह क्या है , वह कौन है? यह आध्यात्मिकता है. वह देवत्व की आवाज देगा,सिर्फ चेतना के एक स्तर से दूसरे तक हमें स्थानांतरित करने के लिए .यह एक आध्यात्मिक जागृति है.
हो सकता है आपने एक बुरा सपना देखा हो, एक बहुत बुरा सपना , लेकिन जब आप जाग रहे होते हैं ,तो आप ध्यान नहीं देते हैं . तुम इतने अधिक , चिंतित नहीं हो क्योंकि आप जानते हो , कि यह केवल एक सपना था. सिर्फ बुरे सपने की तरह – नहीं, नहीं, यह वास्तविकता नहीं थी , यह सिर्फ एक सपना था! उसी तरह अगर हम चेतना के मुक्त स्तर पर आते हैं तो , जो कुछ भी अनुभव तुमने अब तक किया है.उसे तुम स्वप्न की भांति ही समझोगे . एक बुरे सपने की तरह . अब हमें लगता है कि हमने जो अनुभव किया है, वही वास्तविकता है. लेकिन यह मत भूलना: यह भ्रम की केवल एक चाल है. यह वस्तुत: है नहीं. माया, भ्रम का मतलब है” वह नहीं”.यह वास्तविक लगता है, लेकिन यह असली नहीं है, यह एक सपना है.
और इस प्रकार के “सामान्य” चेतना -स्तर पर ,जब तुम भक्तों से मिलते हो तो वे एक अलग स्तर के बारे में तुम्हे बताते है और तुम उन्हें कहते हो:नहीं,तुम स्वप्न में जी रहे हो ,मेरे भाई. जो तुम कह रहे हो,वो तो एक स्वप्न है,सौंदर्य?एकरसता?नि:स्वार्थ सेवा?! ईश्वर-नृत्य और गायन?! आहा,तुम स्वप्न में जी रहे हो.तुम कुछ कह रहे हो…स्वर्णिम लुटेरों के बारे में ?!यह एक स्वप्न है .” पर वे कहते हैं: “नहीं,नहीं!यही वास्तविकता है!” चेतना के विभिन्न स्तरों वाले लोगों को एक दूसरे को समझना कठिन है.वस्तुगत यथार्थ व्यक्तिपरक है. पर कोई तो है जो इस सारे खेल को निर्देशित कर रहा है ,इस सारे खेल को .कृष्ण वंशी बजा रहे हैं और सब उसी के अनुसार नाच रहे हैं .
[*] „भगवदगीता ”२ .२६