Sharanagati
Collected words from talks of Swami TirthaJul
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दर्द का स्रोत, विलाप का स्रोत पीड़ा है. दुख अलगाव से आता है. प्राथमिक, बुनियादी स्तर पर, और उच्च स्तर पर भी, अलगाव विलाप का स्रोत है. एक बार एक साधु महाराज ने कहा: “जीवन पीड़ा है. चलो कृष्ण के लिए पीड़ित होएं ! “और मुझे लगता है कि यह एक निराशावादी दृष्टिकोण नहीं है, लेकिन यह एक अति यथार्थवादी दृष्टिकोण है. यदि आप अपनी खुशी के पल और अपने मुश्किल क्षणों की एक सूची बनाते हैं, तो आप संतुलन बना रख सकते हैं. तब आप सहमत होंगे कि जीवन पीड़ा/दुःख है. पर क्या हम कष्ट सहने के लिए पैदा हुए हैं? क्या यह हमारी दैनिक भोजन है? हमारे अस्तित्व का क्या यही लक्ष्य है? मुझे मत बताओ! नहीं! यह कुछ और है. भक्ति योग कहता है कि ऐसे विचारों को “नहीं!” कह सकें . भक्ति योग का अर्थ है कि आप अपने आप को मूर्खता से अलग रखें.लेकिन फिर भी अलगाव तो है ही .
जीवन का लक्ष्य है, अनुभव लेना . दुख मोहभंग करने के लिए सहायता करता है.जब आप अपना सिर दीवार पर मारते हैं तब आप समझते हैं कि यह दरवाजा नहीं है. इसभूलभूलैया से बाहर निकलने का रास्ता नहीं है. और आपके अंदर क्या छिपा है – यह बुद्धि है ,सही ? आपको अपनी बुद्धि का उपयोग दरवाजे की पकड़ का पता लगाने के लिए करना चाहिए.
विलाप का स्रोत पीडा है, अज्ञान है – इतने सारे अलग अलग तत्व हैं वहाँ. फिर भीआध्यात्मिक अभ्यास से हम चेतना के एक बेहतरसे बेहतर और अंततः एक आदर्श अवस्था तक पहुँच सकते हैं. तो इस का व्यावहारिक पक्ष यह है: हम सच का अभ्यास करें , हमें आध्यात्मिक साधना का अभ्यास करना है. और इस से आप अनुग्रह प्राप्त कर सकते हैं.यह अनुग्रह आरम्भ में आता है और अभ्यास के द्वारा आप इसे गहराई से समझ सकते हैं, आत्मसात कर सकते हैं, और फिर आप इसे प्रतिबिंबित कर सकते हैं. मन की पवित्रता से, आप चेतना की पवित्रता से समझ जाएगें कि आप पर कितना अधिक अनुग्रह है. आरम्भ में हमें यह समझ में नहीं आता. लेकिन बाद में अभ्यास द्वारा, शुद्धिकरन द्वारा, हम वास्तव में समझ जाएँगे कि यह अतुलनीय है !.
यमुना : महाराज ,आप भौतिक संसार दुनिया की पीड़ा के बारे में बोल रहे थे. क्या आप आध्यात्मिक पीड़ा के बारे में कुछ कहेंगें ?
तीर्थ महाराज : नहीं, एक अच्छा प्रचार नहीं है. एक बार एक सवाल उठा था: “यदि भौतिक जीवन पीड़ा है और आध्यात्मिक जीवन पीडा है,तो दोनों में क्या अंतर है?” तो जवाब आया: “भौतिक जीवन एक बार समाप्त हो जाता है. लेकिन आध्यात्मिक जीवन शाश्वत है. “यह कहा जाता है कि आध्यात्मिक पीडा ज्वालामुखी के माग्मा की तरह जल रही है, लेकिन उसी समय यह शहद की तरह मीठा है. तो इसके बिना जीना बहुत मुश्किल है . लेकिन इस प्रकार की पीड़ा – आध्यात्मिक पीडा – हमें यह बिलकुल पता नहीं है क्योंकि वह तो इतना भरपूर है , इतना पोषक है! इसलिए हम सभी को भक्ति के दर्शन पर ध्यान देना चाहिए . , क्योंकि यह एक सस्ता प्रचार नहीं है की : “तुम बस जुड़ जाओ और आप प्रसन्न रहेंगें !” ठीक है, क्योंकि आमतौर पर लोग यह कहते हैं: “हमसे जुड़ें और आप प्रसन्न रहेंगे ” आमंत्रण है क्या ? “हमसे साथ जुड़ें और तुम पीड़ित होंगें .” तो सोचो , अगर कोई उसकी प्रक्रिया के बारे में गंभीर है, तो यह अच्छा है,यह जांच करने के लिए वहाँ क्या छिपा हुआ है.
और श्रद्धालुओं की पीड़ा क्या है? “आह, मैं इतना गिर गया हूँ, मैं अपने प्रभु से इतनी दूरहूँ.” इस तरह की पीड़ा बहुत नाजुक है. दरअसल इस शब्द, यह अभिव्यक्ति वास्तव में उचित नहीं है – यह पीड़ा नहीं है बल्कि यह है लालसा , लालसा …. यह एक बहुत मीठी लालसा है.
पीड़ा , सीमित चेतना के भौतिक स्तर का एक जरूरी हिस्सा है, और आध्यात्मिक मामलों में यह स्नेह की प्रकृति के अंतर्गत आताहै. इसलिए एक अच्छे रोमांस या रोमांटिक फिल्म में यदि पीड़ा न हो तो ,वह कहानी पूरी नहीं है . इस भव में हमें यह समझना चाहिए कि आध्यात्मिक जीवन में एक रंग है , दुख का एक प्रकार है, जो सारी कहानी को पूरा करता है.
मुझे लगता है कि हम एक बार चर्चा कर रहे थे, एक कहानी है जब शुकदेव गोस्वामी घर छोड़ रहे थे .शुकदेव व्यास के बेटे थे . व्यास एक बहुत ही सम्मानित वयोवृद्ध साधु है और उनका युवा पुत्र पूर्णता खोज रहा है. और लड़का कहता है : “पिताजी, मैं पूर्णता की खोज में जा रहा हूँ . मैं आपको छोड़ रहा हूँ ! मैं परमेश्वर की पूर्णता प्राप्त केलिए अपने मोह को छोड़ रहा हूँ .”आप शुकदेव के साहसी और शक्तिशाली खोज को पसंद कर रहे हैं? हाँ, हम सब को पसंद आया, क्योंकि हम भी हमारी खोज शुरू करना चाहते हैं. और व्यास का क्या हुआ …? वे कहते हैं: “ओ मेरे बेटे!”.केवल वृक्षों ने उनकी पुकार सुनी शुकदेव जा रहा है, सब कुछ छोड़ कर ….
जब मैंने पहली बार यह कहानी पढ़ी -तब आप की ही उम्र का था – मैंने कहा: “हाँ! शुकदेव सही है! जय शुकदेव ! बूढ़े पिता को छोड़ दो! क्योंकि यह भी लिखा है कि: वह कोई विशेषज्ञ नहीं है “वह जानता है , हो सकता है,वह नहीं जानता हो “. खुद के लिए खोजें “[*] युवा जा रहा है और वृद्ध व्यक्ति रो रहा है . युवा,युवा के साथ सहमत होंगे. लेकिन जब आप बूढ़े हो जाएँगे ,तब आप उस पिता के दुःख को महसूस कर सकेंगें है, जो बेटे के लिए रो रहा है: ” मत जाओ, मेरे प्रिय …” लेकिन गूंज पेड़ों में छा रही है -निष्फल.
तो एक ही सत्य के विभिन्न चरण,विभिन्न पहलु हैं. बलिदान के बिना कोई पूर्ति नहीं है. यह अलगाव का दर्द है. यही वह दुख है,जिस के बारे में मैं बात कर रहा हूँ – दुख स्नेह की वजह से होता है . क्या यह एक मीठ दुःख है ?यह एक बहुत, बहुत गहऋ भावनात्मक पीड़ा है, जो सारी कहानी को पूरा करता है. यह ,उस हर व्यक्ति को, जो इससे जुड़ा है ,उसे कुछ आनंद देता है. और यह लोगों के बीच संबंध की शुरुआत भर है.
[*] शिव कहते हैं: -“अहम् वेद्मि , शुको वेत्ति , व्यास वेत्ति न वेत्ति वा ! मैं जानता हूँ कि शुक जानता है,हो सकता है व्यास जानते हो,पर हो सकता है” भागवतम “का अर्थ न भी जानते हो !
[*] शिव कहते हैं: -“अहम् वेद्मि , शुको वेत्ति , व्यास वेत्ति न वेत्ति वा ! मैं जानता हूँ कि शुक जानता है,हो सकता है व्यास जानते हो,पर हो सकता है” भागवतम “का अर्थ न भी जानते हो !