Sharanagati

Collected words from talks of Swami Tirtha




(श्री भ .क .तीर्थ महाराज के व्याख्यान से उद्धृत , ३ सितम्बर २००६ सोफिया)

समस्त पुरुष आसानी से असमझ सकते हैं कि मातृत्व प्रेम और वैवाहिक प्रेम में क्या अतर होता है | भक्तों (पुरुष) को यह सुझाव दिया जाता है कि उन्हें समस्त महिलाओं का सम्मान मातृ रूप में करना चाहिए – सिवाए अपनी पत्नियों के | यह एक अलग मामला है | देखिए! समस्त रूपेण आदर दिया जाना चाहिए ,समस्त महिलाऐं माता रूप हैं.सिवाए .अपनी पत्नी के क्यूंकि वही मेरा सर्वोत्तम सम्बन्ध है |यह अलग प्रकार का रस है,अलग भावना है,अलग प्रकार का सम्बन्ध है |

सैद्धांतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो माता यशोदा, दैविए प्रेम का अथाह अंश धारण किए हैं ,पर यह माँ स्वरुप प्रेम है |यह प्रेमी के प्यार जैसा प्रेम नहीं है |
यदि हम मापना चाहें-हालाँकि मुझे लगता है कि हम दैविक संबंधों की प्रगाढ़ता और सौन्दर्य को माप नहीं सकते – पर यदि हम इसका विश्लेषण करने की कोशिश करते हैं तो हम भागीदारों की भूमिकाओं का मूल्याङ्कन कर सकते हैं |प्रथम स्तर शांत रस है – यह एक तटस्थ सम्बन्ध है ,जिसमें पूजक बस ईश्वर की महानता की सराहना करता है |द्वितीय चरण दास्य रस है,दास भाव ,और एक दास स्वयं को तुच्छ समझता है और ईश्वर को – उच्चतम | “वे मेरे प्रभु हैं “-इस (भाव)में अंतर है |अगला चरण है-साख्य रस,मित्रता – मित्र तो समान स्तर पर होते हैं ,है न ? और वात्सल्य रस ,मातृ-स्नेह है,माता-पिता का प्रेम ,भक्त स्वयं को ईश्वर से उच्चतम समझता है ,”वह मेरा पुत्र है “और इस दैविक प्रेम के कारण ईश्वर इसे स्वीकार करने को तैयार रहते हैं |वे इस खेल में हिस्सा लेते हैं,खेल आरम्भ करते हैं|कृष्ण यशोदा के साथ यह खेल खेलने को तैयार थे,पर माधुर्य रस ,दांपत्य प्रेम में वे खेने के लिए तैयार नहीं बल्कि खेलने के लिए बाध्य हैं | उनके लिए कोई दूसरा विकल्प ही नहीं है !
अतः प्रगाढ़ता और भूमिका- स्तर – इनके अनुसार,हम विभिन्न स्तरों को सराह सकते हैं |



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