Sharanagati

Collected words from talks of Swami Tirtha




(श्री भ.क. तीर्थ महाराज के व्याख्यान से ,२८ मई २००६ ,सोफिया )
जब ईश्वर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं अर्थात वे सम्पूर्ण सृष्टि को मुक्त कर देते हैं |इसके बाद भी यदि कोई यहाँ ठहरना चाहता है तो ठहर सकता है |पर जगत की मुक्ति का कार्य तो संपन्न हो चुका |अत:नियमत:तो यह हो चुका ;हो सकता है तकनीकी रूप से मैं इस सम्पूर्ण विचार का हिस्सा न हूँ,लेकिन कार्य तो संपन्न हो चुका है |
ब्रहमांड में घटनाक्रम और विचार तैर रहे हैं ,विभिन्न स्तरों पर प्रकट हो रहे हैं |अत : ऐसा हो सकता है कि हम एक आयाम को तो देख सकते हैं ,पर अगले आयाम को न देख सकें |हम सोचते हैं कि यहाँ १५ व्यक्ति बैठे हैं ,पर कौन जानता है कि कितने :देवदूत और देवता,पुरातन और भावी भक्त भी यहाँ बैठे हैं ?हम तो केवल एक आयाम देखते हैं |
” चैतन्य चरित्रामृत” में “धान महोत्सव “की चर्चा है -वे चावल को दही के साथ बांटते थे और यह प्रसाद वितरण का एक बहुत सुखद त्यौहार था |कहा जाता हे कि वहां हजारों,लाखों ,करोड़ों की संख्या में भक्त एकत्र होते थे |हो सकता है कि हमें अपनी आखों से सिर्फ एक दर्जन भक्त ही दिखाई देते हों ,पर वे जो दिखाई नहीं देते ,वे करोड़ों की
संख्या में होते थे |हो सकता है कि अब मैं थोडा सा धर्म विरोधी हो रहा हूँ,पर शास्त्र कभी कभी ,मर्यादा एवं घटनाओं के होने की सम्भावना की , केवल प्रस्तुति के लिए वचन का प्रयोग करते हैं |इसे हमें शब्दश:स्वीकार नहीं करना है ,तो आप समझे …..सत्य के ,वास्तविकता के विभिन्न स्तर होते हैं |
समय -गणना भी एक चुनौती आवश्यक कार्य है क्यूंकि वास्तव में इसका अस्तित्व ही नहीं हैं |फिर भी हम समय द्वारा नियंत्रित होते हैं -यह कृष्ण की दैविक ऊर्जा है | लेकिन ‘समय’थोडा सा पेचीदा है,यह वहीँ है ,पर हम इसे पकड़ नहीं सकते|घड़ी समय को नाप नहीं रही ,वह केवल यह दिखाती है किकुछ है जो गुजर रहा है और ज्यादातर लोग कहते हैं :”अरे समय गुजर रहा है |” जबकि समय हँस रहा है “नहीं !लोग गुजर रहे हैं |”
देश या स्थान भी एक बहुत रोचक आयाम है ,न केवल समय वरन स्थान भी बहुत रोचक है |जरा सोंचे ,जब आप प्रकृति के बीच हैं तो आप “स्थान ” का अनुमान कैसे लगते हैं ?आप चारों ओर देखते हैं और पता चलता है कि हर चीज गोल है ,पर जब आप यहाँ बैठे हैं तो पाते हैं कि हर वस्तु समकोणीय है एवं अप्राकृतिक है | अत : प्राकृतिक आयाम सदैव वृताकार होते हैं |जब आप “स्थान ” का अनुमान लगाते हैं ,चारों ओर तब यह भी गोल है ,यह एक प्राकृतिक वातावरण है |पेड़ एक पाइप की तरह गोल होते हैं ,पर जब आप इसे उठाकर छत पर रख देते हैं तो यह अंडाकार हो जाता है |अत,उदाहरनार्थ, वे शहर जिनका निर्माण किया जाता है ,वे इतने प्राकृतिक नहीं होते |वे हजारों विस्तृत विचारों को सीमित और घुमावदार बना देते हैं ,प्रकृति के समान कोमल ,बढ़िया ,विस्तृत और अंगीकार करने वाला नहीं बनाते |
स्थान को समझने के लिए यह अत्यंत आवश्यक हैकि हमारे आसपास का “स्थान “क्या है?यह अप्राकृतिक स्थान बहुत थोडा सा है – यह आप को दरवाजे ,अवरोध,सड़कें देता है -पर यहाँ सब कुछ बहुत सीमित है | प्राकृतिक स्थान आप को उदार बनाता है |
स्थान के दो कार्य होते हैं “सीमा ” और दूसरा “खुला क्षेत्र “,जब तक हम चेतना के एक संकुचित दायरे में रहते हैं,स्थान हमारी सीमा बांध देता है | जब आप एक स्वतंत्र मंच पर हैं तब “स्थान”एक वास्तविक देश बन जाता है |देश या क्षेत्र – क्षेत्र मैदान है – कार्य कलाप का मैदान |अत:”स्थान ” हमें कुछ कार्यकलाप करने हेतु दिया गया है |आप अपने आस के स्थान को अपने कार्यों द्वारा भर सकते हैं |वस्तुत: अपनी भौतिक चेतना में लोग यह करते भी हैं -वे शहर बनाते हैं ,कारखाने बनाते हैं ,ये भी और वो भी बनाते हैं |वे अपने आस पास की जगह भर देते हैं ,क्यूंकि उन्हें खाली स्थान पसंद नहीं है -यह “खालीपन का डर” कहलाता है |इसलिए ये जो युवा हैं ,वे दीवारें रंगते हैं -भितिचित्र बनाते हैं -क्यूंकि उन्हें खाली जगह पसंद नहीं है या वे कलाकार ,जो साधारनतया सारी सजावट करना चाहते हैं ,हर चीज सजी हुई चाहते हैं ,तो हम हर उस जगह को,जो हमारे पास है , भर देना चाहते हैं –अपने कार्यकलापों द्वारा |अत: यदि जीवन हमें एक क्षेत्र की भांति दिया गया है ,तो इसे हमें अपने कार्यों द्वारा भर देना चाहिए और
ये कार्य आध्यात्मिक कार्यकलाप होने चाहिए ,यदि आप आध्यात्मिक लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं |अतएव हमें इस क्षेत्र को भरना चाहिए -यह स्थान जो हमारे चारों ओर है ,आध्यात्मिक वस्तुओं द्वारा या यूँ कहा जाए -आध्यात्मिक कार्य कलापों द्वारा भरा जाना चाहिए |इस प्रकार स्थान हमें सीमा बद्ध नहीं करेगा वरन हमारे विश्वास की अभिव्यक्ति हेतु सहायक होगा ‘यही देश है -आपके कार्यकलापों का क्षेत्र |’


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