


Sharanagati
Collected words from talks of Swami Tirtha
Apr
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( श्री भ.क.तीर्थ महाराज के व्याख्यान से उद्धृत ,२५ नवम्बर,२००६,सोफिया )
श्रद्धा/विश्वास मानव के लिए एक सहज आयाम है |विश्वास के बिना हम मानव को पहचान नहीं सकते|हम यह चर्चा कर चुके हैं की विश्वास है क्या |इस विषय पर भिन्न-भिन्न प्रकार के विचार हैं |एक पारंपरिक परिभाषा है: विश्वास वह अटल मत है कि कृष्ण की सेवा से सभी दूसरे उद्देश्य पूरे हो जाते हैं | यह कुछ सैद्धांतिक सा लगता है |यह तत्त्व की परिभाषा है ,तत्त्व अर्ताथ सिद्धांतानुसार | पहले हमें यह परिभाषा सीखनी चाहिए — ईश्वर की आराधना से सभी अन्य उद्देश्य पूर्ण हो जाते हैं |यदि हम इस बिंदु पर सहमत हैं ,इसके कुछ कारण है | साधरणत: हम यह सोचते हैं कि स्व-सेवा से सभी उद्देश्य पूर्ण हो जाते हैं |ईश्वर के सम्मुख स्वयं को प्रस्तुत करने का यह मानवी तरीका है ,क्यूंकि इस परिभाषा के अनुसार इस प्रकार का चिंतन ईश्वर से जुड़ा है |
वस्तुत:हमने यह चर्चा मद्ध्य स्तर से आरम्भ कि है ,क्यूंकि अधिकाश के लिए विश्वास का अर्थ है कि मैं किसी मैं यकीन रखता हूँ जिसे मैं जानता नहीं हूँ | भौतिकवादी कहेगा,”आहार मैं देख सकता हूँ,तो मुझे यकीन है “आध्यात्मिक व्यक्ति कहेगा,”अगर मुझे यकीन है ,तो मुझे दिखाई देगा |” एक समान शब्दों को अलग तरह से कहने पर उनका अर्थ बिलकुल बदल जाता है |
! हमारे लिए विश्वास अस्थिर मत नहीं है |ऐसा नहीं कि मुझे पता नहीं है तो मैं बस यकीन करना शुरू कर दूं |नहीं — कम से कम यह एक दृढ़ निश्चय होना चाहिए कि ईश्वर की आराधना से जीवन के सभी अन्य उद्देश्य पूर्ण हो जाते हैं| पर इस सैद्धांतिक परिभाषा के अतिरिक्त ,एक रसिका व्याख्या भी है |यह उस स्रोत से जुड़ने की निर्मल इच्छा है ,जिससे दैविक आनंद की प्राप्ति होती है |ओ,यह विश्वास की एक असंभावित परिभाषा है !दैविक आनंद उस स्रोत से आ रहा है ? जुड़ना? और यह एक सतत निर्मल प्रेरणा है उस स्रोत से मिलने की?
यह होना चाहिए हमारा विश्वास–एक जीवंत वस्तु|यह सच्चा विश्वास है ,यह है सच्चा मत- जब आपका विश्वास प्राण युक्त हो जाता है |सैद्धांतिक विचार ही काफी नहीं है की हाँ जी,ईश्वर है ,पर साथ ही सदेह भी की क्या वह सच में है ? इस तरह नहीं | यह एक जीता जगता अनुभव होना चाहिए| सैद्धांतिक विचार के अलावा यह ईश्वरीय अनुभव आवश्यक है |पर दैविक अनुभव कैसे लिया जाए? कैसे प्राप्त किया जाए ?स्वयं को दैविक दया के सामने खोल कर रख दो|छुपाओ मत|हिम्मती बनो|
आरंभ में हमें इस विज्ञान के साधारण वाक्य सीखने चाहिए| इसके बाद हमें अभ्यासी होना है और जल्दी या देर से हमें मास्टर की डिग्री तक पहुंचना है|मास्टर -डिग्री इस अर्थ में नहीं की “विश्वास पूर्ण हो चुका है,समाप्त “बल्कि इस अर्थ में “इसको मै अपने जीवन में उतार सकता हूँ|”
”अगर विश्वास एक मानव को असली मानव बनता है तो हमें विश्वास को उगाना चाहिए |विश्वास कैसे उपजा सकते हैं?पहले तो हम संदेहों से भरे हुए हैं ,”मैं विश्वास क्यूँ करूं?”यह मेरी अनुकूलता के पूरी तरह से विपरीत है | मैं तीस साल से धीरे धीरे पढ़ रहा था ,वे मुझे जल्दी पड़ना सिखाना चाहते हैं ?मैं इस पर कुन विश्वास करूं?मेरे अपने संस्कार हैं | मैं अपने संस्कारों से जुड़ा हूँ| मैं इसे क्यूँ छोडूं? मुझे इस विधि पर क्यों विश्वास करना चाहिए?अगर एक थोडा सा भी विश्वास है कि आप इस प्रक्रिया को समर्पित होंगे , तो आप शुरू कर देते हैं यह जाँच | और यह भूलो मत कि भ्रम की दशा मजबूत है! वह बहुत मजबूत है, वह अपने कर्तव्य का प्रदर्शन बहुत अच्छी तरह से करती है | सारी दुनिया हमें सिखाने की कोशिश करती है कि हम यहाँ हैं, यही हमारा घर है|तब विश्वासी शुरू कर देंगे यह समझाना कि “वैसे, शायद तुम यहाँ हो,लेकिन यह आपका असली घर नहीं है. खोजें अपना घर, घर के रास्ते, वापस घर, देवत्व के पास |
असल में, हम कहते हैं, कि धर्म मकान को घर में बदलने के लिए है | क्या आप यह फर्क महसूस करते हैं? यहाँ हम असहाय हैं| असहाय मतलब है जब मछली पानी से बाहर एक सूखे किनारे पर है| हमे अपने प्राकृतिक तत्व, हमारे घर जैसा आराम दूंधना चाहिए|तो पहले हम इस प्रक्रिया पर थोड़ा भरोसा करना चाहिए – इसकी परीक्षा लेने हेतु — सभी को बुरे और सीमित संस्कार के खिलाफ , जो हमारे अपने जीवन में हैं| यह सब कुछ हमें बताता है: “आनंद प्राप्त करने की कोशिश करो” फिर कोई और आता है और हमें बताता है “सेवा करने की कोशिश करो” वह विपरीत संदेश है! यह चौंकाने वाला संदेश है! “घास की एक पत्ती से अधिक विनम्र रहो | एक पेड़ से अधिक सहिष्णु हो| खुद के लिए कोई सम्मान की उम्मीद के बिना किसी के भी सम्मान के लिए तैयार रहो| इस तरह आप हमेशा पवित्रा नाम रुपी मंत्र का जप करने में सक्षम होगें [*] यह बहुत अव्यवहारिक लगता है,लेकिन यह एक सबूत है, कि वहाँ कांहीं कुछ छिपा है| यदि जीवन के औसत मानक और उपदेश के बीच की दूरी थोड़ी है,तो इस पर विश्वास नहीं करना है| लेकिन अगर आप ऐसा कुछ सुनते हैं जो लगता है कि अविश्वसनीय है, जो हासिल करना असंभव है -इसके लिए जाओ! जैसा कि हमारे शिक्षक कहते हैं, “यदि आप शिकार पर जाते हैं तो गैंडे के शिकार पर जाएँ . ” छोटे खरगोशों के शिकार पर नहीं जाना है.|आप एक बड़ी मशीन गन से लैस हैं, विशेष चश्मे जो आप को रात के दौरान देखने में सक्षम बनानेवाले , विशेष रेम्बो चाकू तुम्हारे साथ है -और तब आप लक्ष्य पर निशाना लगते हैं और एक छोटे से खरगोश को मार गिरते हैं ? यह हास्यास्पद है, मेरे प्रियजनों ! नहीं,एक गैंडे को ढूँढो ||
जीवन में कभी निम्न लक्ष्य न रखो | विश्वास करना मनुष्य के स्वाभाव का एक रूप है| मनुष्य स्वभाव का दूसरा रूप है असफलता |अगर लक्ष्य छोटा है तो आप उसे चूक सकते हैं |बड़ा लक्ष्य रखें!हो सकता है कि आप कुछ प्राप्त कर सकें |
उसी प्रकार कि जब गुरु आते हैं और आपको आध्यात्मिक सेवाएँ देते हैं |एक सेवा | तब आप के पास अपनी सभी प्रतिभा का उपयोग करने के बहाने खोजने का मौका है और आप के पास उन्हें समझाने और व्याख्या करने कि क्षमता होगी और स्वयं को भी बताने कि कि,”गुरुदेव,यह विशिष्ट सेवा करना असंभव है.” लेकिन अगर गुरु काफी समझदार है, तो वे दस, या सौ विभिन्न कार्य दे देते है |वे बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि आप से सौ पूरा नहीं होगा |लेकिन फिर भी अगर तुम आधा भी पूरा करते हो — जो कि पचास उपलब्धियों है| यदि आप के पास केवल एक सेवा हैऔर आप उसे नहीं करते तो – यह सौ प्रतिशत विफलता है| लेकिन अगर आपके सौ व्यस्तताएं हैं और आप केवल आधा प्रदर्शन करते हैं – यह पचास प्रतिशत उपलब्धि है! इसलिए गुरु इस सिद्धांत परकाम करते हैं| वे बहुत उदार हैं शिष्यों को जोड़े रखने मैं | रहे हैं. वे कई भारी काम देते हैं| हमे कम से कम कुछ तो करना चाहिए|
यह विश्वास ही है ,जब असंभव हमारे लिए सहज हो जाता है | अब आप हंस रहे हैं !यह सच है ,मेरे आत्मीयों !कभी आपने इस पर यकीन किया है की आप ईश्वर का पवित्र नाम लेना आरम्भ कर देंगे?क्या आप अपने जीवन में चमत्कारों को घटने का मौका देंगें? या आप इतनी बुरी तरह से जड़ हो चुके हैं की आप चमत्कारों को रोक रहे हैं ?हमें तैयार रहना चाहिए,हमें चमत्कारों को घटने का मौका देना चाहिए |
श्रीला श्रीधर महाराज कहते हैं की विश्वास मानव की सबसे ताकतवर शक्ति है,इससे अद्धुत फासलों को भरा जा सकता है |अपनी शक्ति के बारे में सोचो! आप बहुत शक्तिशाली हैं !! विश्वास से आप स्थूल से सूक्ष्म तक आ सकते हैं | फिर वंहा से सर्वव्यापी-स्व तक |दिमाग से दिल तक आ सकते हैं |छोटी दूरियां-लम्बे रास्ते |
[*] „शिक्षाष्टक ”, 3
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