Sharanagati
Collected words from talks of Swami TirthaMar
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( श्री भ . क .तीर्थ महाराजा से हुई चर्चा से उद्धृत,, ७ सितम्बर , २००६ , सोफिया )
मेरी आपसे एक विनम्र प्रार्थना है| आइए ,एक क्षण के लिए सोचें और संत की परिभाषा ढूंढ निकालें|संत सम व्यक्ति कौन है ?संत हम किसे मान सकते हैं ?इसे कोई ज्यादा सोचना या अधिक बौद्धिकतापूर्ण रूप देना आवश्यक नहीं है |पर आपके दिमाग में क्या आता है ,जब आप कहते हैं,”संत,साधू व्यक्ति”?
प्रेमाबिंदु : ईश्वर द्वारा अधिकृत |
तीर्थ महाराजा : क्या हम इसे पता कर सकते हैं ?शायद पता नहीं लगा सकते|पर हम इसे अनुभव कर सकते हैं|कृपया ,अपने कथन को याद रखें और दूसरों के कथन से प्रभावित न हों | अपनी परिभाषा में बने रहें | हम एक के बाद एक आगे चलते हैं ,ताकि हर कोई अपनी राय दे सके |
श्यामसुन्दर : वह,जो अपने कार्यों द्वारा , उसे अनुसरण करने का उदहारण प्रस्तुत कर सके|
राग : जो प्रकाश दे |एक प्रकाशमय व्यक्ति|
राम विजय : जो सत्य जानता है,साधू |
यशोदा : जिसने ईश्वर के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया है |
दामोदर : यह तो शब्द में ही निहित है –जिसने स्वयं को समर्पित कर दिया हो|
केशव : जो अपने ह्रदय में ईश्वर को देखता है |
एक भक्त : जो आदमी और दैविक की सीमाओं से परे हो चुका हो |
अन्य भक्त : जिसे कोई भय न हो |
निखिलात्मा : मेरे लिए यह वह व्यक्ति है ,जो मुझे अपनी ओर आकर्षित करता है | मैं उससे सम्बद्ध होने के लिए व्यकाकुल होऊं |
मनोहारी :.जो दूसरों के लिए अपना त्याग कर दे |
केशव : दास-अनुदास , जो प्रभु के सेवकों की सेवा का प्रयास करे|
अन्य : जो करूणा मय हो |
प्रेमा -लता : जो दूसरों को संत बना दे |
वाल्यो: जो अमरत्व,मन की शन्ति और आत्मा का आनंद हो (सत-चित्त -आनंद).
नेल्ली : जो विनम्र है |
रुक्मिणी :जो ईश्वर के निकट हो गया हो और निष्-पापियों के भी |
अन्य : हर कोई जो ईश्वर के निकट आ गया हो–किसी भी चरण से –वह संत है |
अन्य : वह,जो सच्चा प्रेम करता है–जो सच्चा प्रेम अनुभव कर सकता है और सच्चा प्रेम दे सकता है |
( युवा ) दानी : वह पवित्रता ,जो अंधकार की हिमशिला को तोड़ रहा हो,उसे प्रकाश में बदल दे और उसे विकास के लिए दूसरों तक पहुचाए|
द्रागी: निश्पापी लोग
यमुना : वह,जिससे मिलने के बाद आप प्रेम में पड़ जाते हो |वह,वो व्यक्ति है जो लोगों के मन और बुद्धि ,दोनों को आसानी से सन्तुष्ट कर सकता है | वह सरल शब्द बोलता है ,पर हर चीज़ के मूल को छू सकने योग्य होता है |जो दूसरे लोगों का ह्रदय देख सकता है और ह्रदय से ह्रदय की बात करता है |
दामोदर :. जो ईश्वर को अतिप्रिय हो क्यूंकि उसने उनके चरण कमलों में शरण प्राप्त कर ली है |
अन्य : सच्चे संत की उपस्तिथि में मैं अलग वातावरण का अनुभव करूंगा | में पूर संतुष्टि को अनुभव करूंगा |मुझे ज्ञान प्राप्त होगा और विकास होगा |
साशो : वह ,जो ज्ञान- अज्ञान का विज्ञान समझता है और जीवन -मुक्ति प्राप्त करता है — जीवन -मरण के चक्र से मुक्ति |
प्रेमानान्दा : . जो,ह्रदय- चन्द्र को कमल प्रकाश प्रदान करे |
रागा: सूर्य ! सूर्य !
रेवती : जो सांसारिक जगत का परित्याग कर दें,भावात्मक और मानसिक निर्भरता का भी त्याग कर दें और उनके पास जो कुछ भी है,उसे लोगों की और प्रभु की सेवा मैं अर्पित कर दें|
अन्य : .जो,लोगों को ,पशुओं को और पुष्पों को प्रेरित करे|
यदुनाथ : वह,जिसने प्रकाश के प्रति समर्पण कर दिया हो,वह जो स्वयं प्रकाश निर्मित होगया हो और निरंतर प्रकाश में प्रवाहित हो रहा हो |और सिर्फ प्रकाश में ही नहीं बल्कि दैविक प्रकाश में |और सब भक्तों के बोलने बाद,मुझे अपनी परिभाषा बहुत हलकी लग रही है और मुझे मालूम है कि अभी कुछ और भी है : एक संत आपको दैविक प्रकाश के विभिन्न गुणों को विशेष रूप से अनुभव करवाता है |
निखिलात्मा :.सब जीवात्माओं का अतिप्रिय और अजातशत्रु
अन्य : हम सभी संत बन सकते हैं,पर सर्वप्रथम,हमें इसकी चाह हो,दूसरा,हम इसके लायक हों और तीसरा :वे इसे हमें प्रदान करें|
यशोदा : संत हमारे जीवन को पूर्ण रूप से परिवर्तित रखने की क्षमता रखते हैं और हमारे सुपक्ष को उभरने की |
अन्य : उनसे हुई हर भेंट आपको और अच्छा व्यक्ति बनाने में सहायक हो |
अन्य : . पहले कीर्ति प्राप्त करें और फिर समर्पित हो जाएँ|
अन्य : जब ईश्वर स्वयं पृथ्वी पर आ जाता है |
अन्य : . जो स्वयं से एवं दूसरों से समरस हो — किन्तु सम्पूर्ण एकरसता हो |
अन्य :. मेरे विचार से सब के विभिन्न संत होते हैं और प्रश्न यह नहीं है की वे क्या हैं बल्कि ये की वे कौन हैं? मेरा संत कौन है?
तीर्थ महाराजा : तो ,अगर हम आप के द्वारा उल्लेख की गयी सुन्दर विशेषताओं को एकबद्ध करें –तो मैं आपको बता सकता हूँ कि ऐसे व्यक्ति का मिलना मुश्किल है | कौन इन सब जरूरतों को पूरा कर पाएगा ? त्यागी और समर्पित,विनम्र और प्रकाशमय ,तुच्छ और महान — यह दुर्लभ है | आप तो एक संत व्यक्ति की दैविक विशेषताओं कि एक पूर्ण सूची दे रहे थे |अप कुछ आम बिंदु आपने उल्लेख किए |इस सन्दर्भ में मैं ,शास्त्रों से कुछ पंक्तियाँ ,अपनी परंपरा से , उद्धृत करना चाहूंगा | कहा गया है :
नदियाँ बहत नहीं अपने वास्ते,
बस परहित के कारने
पेड़ ना देबे फल अपने वास्ते
बस परहित के कारने
मेघा देब ना जल अपने वास्ते
बस परहित के कारने
एसो ही संत जिए न अपने वास्ते
बस परहित के कारने
पर आप ऐसा तभी कर सकते हैं ,जब आप ईश्वर के निकट हों| यदि आप स्रोत के निकट हैं ,तो आप सार के भी निकट हैं | यदि आप ईश्वर के लिए जी रहे हैं ,तो आप सब के लिए जी रहे हैं | यदि आप अपने किए जी रहे हैं तो आप किसी के लिए नहीं जीते |
और आप की सूची से संतों की संगत की, तुरंत संगत की आवश्यकता को भी मैं समझ सकता हूँ |इस सूची से हम सभी समझ सकते हैं की क्यूँ संतों का साधू-संग ,इतना हमारे किए आवश्यक है | क्यूंकि यह सही है कि शुद्ध व्यक्ति के संसर्ग से मेरा ह्रदय,मेरा जीवन परिवर्तित हो जाएगा | हमारे जीवन मैं संतों से जुड़ना अति आवश्यक है | अवसर को न चूकें |
भक्त्पूर्ण-संगत बहुत मजबूत रहनी चाहिए |यदि हम सदेव संतों के गुणों की प्रशंसा करें,संत सम भक्तों की जो हमारे चारों ओर हैं,तो यह संगत सशक्त रहेगी| यदि आप एक अगरबत्ती लेते हो तो इसे तोडना सरल है ,कई अगरबत्तियों को लो,कोशिश करो,इसे तोडना लगभग असंभव है |यदि भक्तों की संगत एक है,कुछ भी तुम्हें तोड़ नहीं सकता,पर यदि तुम बिलकुल अकेले हो….
हमें पवित्र संग की सराहन करनी चाहिए |हमारे भक्ति मण्डल में एक कथन है -“सब एक के लिए और एक सब के लिए”इसलिए हम कहते
“साधू -संग साधू -संग सर्व -शास्त्रे काय लवमात्र साधू – संगे सर्व -सिद्धि ह्या [*] संतो से जुड़े रहो ,संतों से जुड़े रहो,क्यूंकि उनसे जुड़कर तुम सरलता से पूर्णता को प्राप्त कर लोगे ” सम्पूर्णता – क्यूंकि यह आपको दी जाएगी ,और यह दिखाई भी देगी ||
.”एक बार बहुत बड़े उपदेशक श्रीला श्रीधर महाराज के इर्द-गिर्द बैठे हुए थे |आपको तो पता ही है कि उनकी छुपने की प्रवृति थी ,वे सदेव छुपे रहते थे,पीछे रहते थे,नवद्वीप के अपने मंदिर से वे कंही और जाते ही नहीं थे |इसलिए,सभी वैष्णव उनके पास आते थे ,क्यूंकि वे एक उच्च श्रेणी के संत थे|वे स्वयं में पवित्र तीर्थस्थल के समान थे | लोग उन तक आते थे,वे लोगों तक नहीं जाते थे | वह पवित्र स्थान था | सब उनके चारों ओर बैठे थे और वे अति शांत उपदेश दे रहे थे : “प्रवचन दो ! जाओ और लोगों को बताओ!” और अंत में उन्होंने कहा ,”मैं तुम्हें सब अधिकार देता हूँ |मैं इसे करने के लिए तुम्हें समर्थ बनाता हूँ |”
तो जब ये दैविक गुण हम पर प्रतिबिंबित होते हैं,हम पर पड़ते हैं तब हमारा जीवन बदल जाता है |कृपया इस दैविक संपर्क को बढाएँ,एक भी अवसर चूके न,एक क्षण भी ना खोए इस संपर्क हेतु क्यूंकि अंत में यदि जब आप पहुच जाते हैं ,यदि आप लौट आते हैं ,आप को समझ आएगा कि आपके जीवन में वास्तविक सहायता थी क्या |
हो सकता है कि यह तस्वीर हमारे लिए काफी पेचीदा हो| पर अंत में जब आप वापिस लौटते हैं,पीछे मुड कर देखें कि क्या हो गया है — यह पूर्ण रूप से निर्मल एवं अटूट रेखा होगी ,आपके गंतव्य तक पहुँचने की ,और वे कौन हैं जो आपके रास्ते किनारे पंक्तिबद्ध खड़े हैं?कौन आपके लौटने पर बधाई देते हैं ?कौन आपके पथ पर ईंटे सजा रहे है? ये ही संत हैं ,बस आसपास देखें और आप को वे मिल जाएंगें |
[*] चैतन्य -चरितामृत , मध्य 22.54