Sharanagati

Collected words from talks of Swami Tirtha




( श्री भ .क .तीर्थ महाराज के व्याख्यान से उद्धृत , ३ सितम्बर २००६,सोफिया )
शांति और सम्पूर्ण,समस्त प्रसन्नता -बिना किसी भय के , प्रसन्नता का पूर्ण स्तर प्राप्त करने के का मार्ग है- भगवान कृष्ण की प्रार्थना करना और हमें संतों से जुड़ने के अवसर को लपक लेना चाहिए | क्यूंकि जीवन का एक अर्थ ये भी है – हमें लोगों से जुड़ना है | सनातन दार्शनिकों के अनुसार,मनुष्य जीवन का अर्थ है सामाजिक जीवन और वे जो समाज में नहीं रह रहे हैं , वे मनुष्य नहीं हैं |यदि वे मनुष्य नहीं हैं तो फिर क्या हैं ?पशु या ? दैविक प्राणी | अत:वे जो समाज में नहीं रह रहे हैं ,वे या तो पशु हैं या दैविक प्राणी |इसका अर्थ है कि हम अपने सम्पूर्ण जीवन में जुड़े रहते हैं | अपने बच्चों से जुड़े रहते हो ,अपने पति से जुड़े रहते हो,अपने परिवार से ,काम से ,पढाई से -हर समय जुड़े रहते हो | यदि हम भाग्यशाली हैं तो हम संतों समान लोगों से जुड़ सकते हैं |इस दैवीय संगत के होने से हमारे जीवन में कोंन सा महान अवसर आ सकता है ? या एक सम्पूर्ण जीवन बस यूँ ही चूक गया ! ६०-८० साल,एक सम्पूर्ण अस्तित्व -चूक गया |जरा सोचिए ,संतों से जुड़े रहने के अवसर के बिना ,कितने जीवन निकल गए | पर अब आपको मौका मिला है |हम सब साथ हैं और हमें इस मौके को लपक लेना चाहिए |संतों से जुड़ने के मौके को गवांये नहीं |
निसंदेह यह जुडाव बहुत सामान्य सी बात हो जाती ,यदि आप सारे समय ही जुड़े रहते हैं |यदि आप कृष्ण से साल में एक बार जुड़ते हैं ,तब आप उनकी सराहना इस प्रकार करते हैं,”आप कितने महान हैं ,आप कितने अच्छे हैं,आप तो भगवान हैं !”पर क्या हो ,जब वे प्रतिदिन आप के पास होते हैं ..? अगले सप्ताह आप क्या कहेंगे ,”अरे ! तुम्हें फिर से भूख लगी है ?तुम फिर से चपाती के लिए आये हो?” अपने करीबी व्यक्ति की बड़ाई करना काफी मुश्किल होता है |तो आप अलास्का में रहने वाले भक्त से तो बहुत खुश रहते हाँ ,पर आपने पास वाले बिछोने पर सोने वाले को सहन करना- जरा मुश्किल होता है |
हमारा प्रेम,हमारी प्रशंसा सैद्धांतिक नहीं होनी चाहिएं ,ये व्यवहारिक होनी चाहिए या यूँ करें कि एक प्रेम प्रसंग लेते हैं |जब तक प्रेमी-प्रेमिका एक दुसरे के साथ नहीं होते ,वे इसके ली कुछ भी करने को तैयार रहते हैं |जब वे साथ हो जाते हैं ,जब अपना जीवन ठीक कर लेते हैं – बस कुछ साल और फिर ” इस आदमी से छुटकारा कैसे पाऊँ ? मुझे कोई दूसरी औरत कैसे मिल सकती है ?”
तो आप इस निरंतर संसर्गजुडाव से उब जाते हैं |अत:कुछ -कुछ अन्तराल के बाद संतों से जुड़ना बहुत लाभकारी होता है
जरा सोंचे ,गुरुदेव आते हैं और साल के ३६५ दिन आपके साथ रहते हैं !इसे सहन करना बहुत मुश्किल है !एक साल में दो बार जब मैं यहाँ आता हूँ या नहीं आता हूँ –मैं यंहा होने और नहीं होने -दोनों तरह की आज़ादी का आनंद लेता हूँ –मेरे लिए यह काफी है |
लेकिन इस संसर्ग की गुणवत्ता और प्रगाढ़ता अत्यंत महत्वपूर्ण है |
जरा गिने कि आपके कितने सहयोगी होते हैं – परिवार में,आपके वृहद परिवार में ,घर में ,विद्यालय में,शिशुघरों में,इसमें,उसमें –सैंकड़ों ,हजारों – है न ?इन सब में महत्वपूर्ण कौन है ? आप यदि पांच का भी नाम लें सकें तो आप अपने को भाग्यशाली समझें |
संत-संसर्ग बहुमूल्य है क्यूंकि उनके साथ हम इस भव सागर को पार कर सकते हैं |कृष्ण का आशीर्वाद तथा सुसंगत बहुत सहायता करते हैं| अतेव यह है हमारा आदर्श – संतों संग शुद्ध संगत|क्यूँ? क्यूंकि इस संगत में भगवन कि सेवा करना बहुत आसान हो जाता है |
हाल ही में किसी ने कहा ,”दानवों की संगत में रहना बहुत ही मुश्किल है” और मैंने कहा,”देखने के नजरिए को बदल डालो|”हमारा दृष्टिकोण विरोधी तत्वों वाला नहीं होना चाहिए |पर हमें ये भी समझना चाहिए कि कुछ हालात पक्ष में होते हैं और कुछ हालात हमारे पक्ष में नहीं होते हैं |आप के आसपास संत समान लोग हैं – यह लाभकारी है और संत सामान लोगों का आपके आसपास ना होना भी हितकारी है – इस प्रकार आप ज्यादा अच्छी तरह से समझ सकते हैं कि क्या कैसा है?कितने जीवन निकलने के बाद जब हम किसी सच्चे संत के संपर्क में आते हैं तो हम भाग्यशाली हैं |


Leave a Reply