


Sharanagati
Collected words from talks of Swami Tirtha
Dec
17
(श्री भ .क .तीर्थ महाराज के व्याख्यान से उद्धृत , ३ सितम्बर २००६ सोफिया)
कृष्ण “श्रीमद भागवतम” में कहते हैं ”: “ मैं सभी जीवों में परमात्मा हूँ- भीतर भी और बाहर भी |”यह ईश्वर की शक्ति है कि वह अन्दर भी है और वही बाहर भी है | यही गूढ़ और कल्पना से परे प्रभु की शक्ति है कि वे भीतर भी उपस्थित हैं और बाहर भी हैं | इस रूप को ही श्यामसुन्दर कहते हैं |.
प्रभु का यह कल्पनातीत रूप है } “श्याम” का अर्थ है सावला,सुन्दर का अर्थ है मनमोहन }” तो इस समझ से परे भाव से आप चुन सकते हैं – वह,जो आपको पसंद आए |श्याम रूप या सुंदर रूप|श्याम वह है जोकि छुपा हुआ है,अदृश्य है ,आप समझ नहीं सकते हैं |समझ के द्वारा ,उस तक पहुचना असंभव है |पर उसका सौंदर्य आकर्षक है |ओ मेरे प्रभु,आप इतने भव्य हैं ,सहृदय हैं की मैं आपको समझ ही नहीं पाता,बस आप की ओर आकर्षित हो जाता हूँ| यही भक्ति है-मैं आपकी ओर आकर्षित हूँ|
श्यामसुंदर प्रभु का प्रश्न : गुरुदेव , मुझे एक प्रश्न पूछना है I श्यामसुन्दर का विरोधाभास यह है कि- एक ही समय पर व्यक्तिगत-अव्यक्तिगत है- यह निरपेक्ष है | जब हम निरपेक्ष के एक भाव का चयन करते हैं तो वह कुछ सापेक्ष में नहीं बदल जाता?
गुरुदेव : विरोधाभास पुरुष-भक्तों के जटिल मानस के लिए है|यदि हमारी यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हो जाती है – जटिल मानस वाली – तो हम अपना सारा जीवन इसी विरोधाभास को सोचने में निकल देते हैं और इस तथ्य को भूल जाते हैं कि हमें उससे प्रेम करना चाहिए |अत: सहज रहो|वे सभी रहस्य,जो आप अपने क्षुद्र दिमाग से समझ नहीं सकते प्रेमपूर्ण पद्धति द्वारा वे सब आप को बता दी जाएंगी |यह हमारी भक्ति प्रक्रिया है – हम भावों के माद्ध्यम से समझ के एक उच्च स्तर पर आने की कोशिश करते हैं, क्योंकि निश्चित रूप से वह हम से उच्चतर है | निम्न उच्च तक नहीं पहुच सकता ,झपट नहीं सकता |एक भारतीय कहावत है-जैसे बौना चाँद पकड़ने की कोशिश कर रहो हो|यह असंभव है | वहबस कूदता है,कूदता है ,पर चाँद हाथ नहीं आता|पर कृष्ण आप तक आ सकते हैं |वे आप को ज्ञान प्रकाश दे सकते हैं- काले प्रभु प्रकाश दे सकते हैं |यही वो तरीका (मार्ग) है |
हम ये भी जोड़ सकते हैं कि श्याम ( जो सांवला(काला) है) सुन्दर (मनमोहक)है,जब वह भक्तों से घिरे होते हैं
” वस्तुत:यह रहस्यमयी अंधकार है | याद है जब वृद्ध गोपियाँ यशोदा माता से कृष्ण की शिकायत करती हैं कि “वह हमारा माखन चुरा रहा है “क्यूंकि उसके आभूषण चमक रहे हैं और इससे वह अँधेरे में भी देख सकता है ,तो माता यशोदा कहती हैं,”ठीक है ,तो मैं उसके आभूषण उतार लूंगी |” तब गोपियाँ कहती हैं,”नहीं,नहीं,आप ऐसा नहीं कर सकतीं !और वैसे भी,उसका सांवला रंग तो चमकता ही है ,वो तो देख ही लेगा|”
इस प्रकार केवल श्याम -सुन्दर बगैर – केवल श्याम स्वयं में ही गूढ़ है ! यह यह ऐसा अँधेरा है ,जो सारे ब्रह्माण्ड को आलोकित कर रहा है |तो आप आसानी से इस सुन्दर को छोड़ सकते हैं – सुन्दर, ध्यान लगाने के लिए काफी है | यह आपके ह्रदय को प्रकट करने के लिए काफी है |
पर फिर भी आप उसे भावात्मक आवेश के तहद “श्याम” बुला सकते हैं |तो वह तो मानवीय तर्क के परे है | पर वह स्वयं को भक्तों के शुद्ध हृदयों में प्रकट कर सकता है |
श्यामसुन्दर प्रभु का प्रश्न : गुरुदेव , मैं बिलकुल यही सोच रहा था क्योंकि यह विरोधाभास अकल्पनीय है लेकिन यदि अकल्पनीयता का एक ही पक्ष लिया जाए तो प्रकटत: यह कुछ कल्पनीय में बदलना शुरू हो जाती है ऐसा है या नहीं?
गुरुदेव : .अच्छा! मैंने तुम्हें बताया था कि स्वयं श्याम कि कल्पना करना भी असंभव है ,तो हमें इससे आगे और अधिक की आवश्यकता नहीं है | आप ठीक हो,सही हो-मानवीय तर्क के अनुसार| किन्तु वह तो मानवीय तर्क से इतर है और उसका एक दैविक तर्क है | “श्री इशोपनिषद”का आवाहन क्या था?” :आप सम्पूर्ण समष्टि से कितने सारे पूर्ण इकाई निकालें,तब भी यह वैसा ही रहता है |” वह अपनाप में विरोधाभास है – कितने छोटे छोटे विरोधाभास आप उससे हटा लेते हैं
तब भी वह विरोधाभासी व्यक्ति ही रहेगा| तो इन सब विरोधाभासों को छोड़ दो |भक्ति द्वारा सभी विरोधाभास अनुकूल हो जाते हैं |
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