Sharanagati
Collected words from talks of Swami TirthaJul
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(श्री भ.क .तीर्थ महाराज के व्याख्यान से .२५ मई २००६ , सोफिया )
आइए एक अलग तरह का विषय शुरू करें- मण्डल के बारे थोड़ी चर्चा करें | मुझे लगता है कि आप सभी मण्डल के बारे में जानते हैं -मण्डल -रेखा चित्र /आकृतियां हैं – बुद्धि,ध्यान और उर्जा को एकाग्रचित्त करने के लिए | बहुधा मंडल एक चित्र है जो कुछ खास तत्वों को दर्शाता है | अगर आप पारंपरिक मंडलों को ध्यान से देखें तो पाएंगे कि बाहरी ओर आयताकार होती है ,वर्ग की तरह | यह चौकोर आकृति भौतिक वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है| स्थूल सदैव आयताकार होता है, गोल कभी नहीं होता – क्यूंकि यह स्थूल है ,यह भौतिक है ,जो बहुत रूखा है ,बहुत बुनियादी है | इन प्रवेश द्वारों से आप अपना ध्यान लगाना आरम्भ कर सकते हैं |जैसे ही आप मण्डल में प्रवेश करते हैं, तुरंत एक वृत्त आता है,यह वृत्त कमल के फूल क़ी पंखुड़ियों से बना है | जितना आप केंद्र बिंदु के निकट पहुँचते हैं ,उतनी ही कोमल हो जाती हैं ये कमल पंखुडियां | यह बिंदु आनंदित करने वाला बिंदु है | तो आप स्थूल से आरंभ करते हैं और एक सुंदर प्रक्रिया द्वारा , मूल के निकट और निकट , कदम उठाते हुए ,महत्वपूर्ण बिंदु तक आ जाते हैं | स्थूल से आध्यात्म तक की एक महत्त्वपूर्ण खोज |
इसलिए मण्डल का अति महत्त्वपूर्ण हिस्सा है..केंद्रीय चक्र | मण्डल एक बहुत ही सशक्त औजार है -ध्यान,बुद्धि और सामर्थ्य को एकाग्रचित्त करने के लिए | केन्द्रीय वृत्त, मण्डल को एक बनाए रखता है | बौद्ध भिक्षु ,कभी -कभी ,अलग – अलग रंगों के पाउडर से एक गूढ़ आकृति वाला , सुन्दर मण्डल बनाने में कई सप्ताह लगा देते हैं | और जैसे ही वह तैयार होता है ,वे बस आते हैं और सब कुछ पोंछ देते हैं | क्यों? ताकि यह समझ में आ जाए कि इस जीवन में सब कुछ क्षणिक है |
पर हमारी शाखा में भी मण्डल हैं,और यह शिष्य – मण्डल है | शिष्यों का यह मण्डल गुरु के चारों ओर है | तो यह गुरु हैं ,जो इस मंडल को ,लोगों, के ढांचे को एक बनाए रखते हैं | अत: शिष्यों का यह ढांचा एक अति सशक्त औजार भी है ,जो हमारी उर्जा को केन्द्रित रखता है | एक मण्डल केवल तभी काम कर सकता है ,जब हम इसे ठीक तरीके से प्रयोग करते हैं | अतएव ,शिष्यों के इस आध्यात्मिक मण्डल को भी ठीक प्रकार से काम करना चाहिए | हर एक को अपने अध्यात्मिक गुरु द्वारा दी गयी सेवा,स्थान,और कर्त्तव्य को बनाए रखना चाहिए और उसे सुरक्षित रखना चाहिए | अन्यथा , एक बेसुरापन आ जाएगा और शक्ति का केन्द्रीयकरण और अध्यात्मिक खोज प्राप्य नहीं होगी | भक्तों के समूह को साथ रखना गुरु की भी जिम्मेदारी है | इस बारे में सोचो | अगर इस पर सोच -विचार करते हो और इस विषय की गहराई तक जाते हो ,तो आप बहुत कुछ समझ जाएंगें |