Sharanagati

Collected words from talks of Swami Tirtha




(श्री भ.क. तीर्थ महाराज के व्याख्यान से उदधृत ,२ सितम्बर ,२००६,सोफिया)
जैसा कि आप को विदित है कि हम सोफिया में हैं तो हमें दर्शन के विषय मैं बोलना चाहिए ,क्योंकि “सोफिया” का अर्थ है” बुद्धिमत्ता”
.ज्ञान एवं बुद्धिमत्ता के बीच अंतर होता है |ज्ञान अर्थात सूचना | बुद्धिमत्ता का अर्थ है :अस्तित्त्व का सम्पूर्ण अवलोकन | हम कह सकते हैं कि वास्तविक बुद्धिमत्ता है प्रेम करने की व्यवहारिक योग्यता |यह जीवन का उत्कृष्ट रहस्य है |
हम भारत की परम्पराओं का पालन क्यूँ करते हैं ,इसका कारण यह है कि हम इस प्राचीन संस्कृति का आदर करते हैं क्यूंकि भारतीय परम्पराओं के रूप में हमारे लिए कुछ शाश्वत एवं असीम संरक्षित है |भारतीय परंपरा बहुत प्राचीन हैं ,हजारों वर्षों का अतीत इससे सम्बद्ध है |यह परम्परा उन कठिनाइयों में भी बची रही है ,जिनसे पश्चिम में हम अभी तक रूबरू भी नहीं हुए | और यदि पूर्व की इस बुद्धिमत्ता और भारत की बुद्धिमत्ता से सीखते हैं तो से हम अपने जीवन को ऊपर उठा सकते हैं ,अपने जीवन को अधिक सही (सम्पूर्ण )बना सकते हैं |
यदि हम विचार करें तो पाते हैं कि भारत ने सम्पूर्ण विश्व को कुछ बहुमूल्य चीजें दी हैं | उदहारण के लिए ,इन दिनों “योग ” एवं ‘ध्यान ” एवं “योग”-ये दो शब्द सारे संसार में आम हो गए है | परतु ,वास्तव में कभी कभी इन शब्दों को समझने में ग़लतफ़हमी हो जाती है,क्यूंकि फैशन गुरु और कंपनियों के दर्शन के विषय में बोला जाता है -पर असली चीज ये नहीं है |गुरु एक आद्ध्यात्मिक व्यक्ति होना चाहिए,दर्शन -जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नों से सम्बद्ध होना चाहिए |
लेकिन व्यवाहरिक बुद्धिमत्ता क्या है ,इसे समझने और स्पष्ट करने के किए,मैं एक कहानी आपको सुनाना चाहता हूँ | एक बार कन्फिउशिस,लाओ द्ज़े और भगवन बुद्ध मिले | होसकता है कि यह कहानी ठीक इस प्रकार से नहीं हो ,पर समझने के लिए यह एक अच्छी कहानी है | तो ये तीन असाधारण व्यक्तित्व मिले और एक ही बात पर गौर किया कि वन्हेक मर्तबान था ,सिरके से भरा हुआ | कन्फिउशिस यथार्थ को मानते हैं ,उनका दर्शन यथार्थवादी है | तो उन्होंने सिरके मैं ऊँगली डाली ,उसे चखा और बोले,”यह खट्टा है |” अब भगवन बुद्ध आये ,जो जीवन की वास्तविकताओं के बारे में थोड़े से निराशावादी हैं .तो उन्होंने भी अपनी ऊँगली सिरके में डाली ,चखा और कहा.”नहीं यह खट्टा नहीं ,यह कडवा है |”पर फिर लाओ द्ज़े आये,उन्होंने भी सिरके में ऊँगली डाली ,चखा और कहा,:नहीं ,यह खट्टा नहीं है
लेकिन ,कडवा नहीं है –यह मीठा है |”तो यह है व्यवहार में (व्यावहारिक )बुद्धिमत्ता |हम जीवन को चख रहे हैं ,हम जीवन के सिरके को चख रहे हैं |कभी ऐसा लगता है,कभी वैसा लगता है …पर यदि आप आप में थोड़ी सी भी बुद्धि है ,तो यह आप के लिए मीठा होगा |सोफिया के ,बुद्धिमत्ता के नागरिक होने पर गर्व करें और बेहतर उद्देश्य के लिए इस बुद्धिमत्ता का उपयोग करें ,जीवन के परम उद्देश्य के लिए उपयोग करें क्यूंकि हमें अपनी ख़ुशी मिल सकती है और हम अपनी जिन्दगी को मधुर बना सकते हैं ..परमप्रभु –भगवान कृष्ण से जुड़कर |


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