Sharanagati
Collected words from talks of Swami TirthaMay
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(श्री भ.क. तीर्थ महाराज के व्याख्यान से उदधृत , २६/११/2006, सोफिया )
मनुष्य की चार भूमिकाएं हैं. एक योद्धा की है. मनुष्य को सही में मनुष्य होना चाहिए. आमतौर पर हम सोचते हैं कि मनुष्य को एक लड़ाकू होना चाहिए. इसलिए अगरआप मार्शल आर्ट प्रशिक्षण के लिए
जाते हैं तो वहां , आप को ज्यादातर पुरुष मिलेंगें .कभी कभी आदमी के चरित्रवाली – महिलाऐं भी मिल जाएंगी.पुरुषों के लिए यह एक पारंपरिक भूमिका है . भगवान भी एक योद्धा हैं . हम कृष्ण की पूजा ऐसे
भगवान के रूप में करते हैं ,जो कभी हार नहीं मानता . वे न्याय के लिए लड़ने के लिए तैयार हैं . कृष्ण आप के के लिए लड़ने के लिए तैयार हैं. यह मनुष्य के लिए एक दिव्य भूमिका है.
मनुष्य के लिए दूसरी मुख्य भूमिका राजा की है. राजा का अर्थ केवल शीर्ष पर आनंद लेने वाला ही नहीं , बल्कि वह एक कार्यवाहक, एक शुभचिंतक है. वह अपने अधीनस्थों का ध्यान रखता है , वह कर-एकत्र और मातहतों का उत्पीडन मात्र नहीं करता, वह देखभाल भी करता है.एक बार भारत में इस तरह के एक महाराजा थे , जब भी वे अपने महल से बाहर जाते थे , वह अपनी शारीरिक वजन के बराबर सोने और चांदी के सिक्कों की एक राशि का वितरण करते थे . राष्ट्रपति कितनी बार अपने महल सेबाहर आ रहे हैं ? कितना वितरण हो रहा है?यह व्यक्ति केवल वसूली ही नहीं कर रहा था , बल्कि यह वितरण भी कर रहा था . और राजा को केवल भौतिक रूप में ध्यान नहीं रखना चाहिए, बल्कि आध्यात्मिक रूप में भी रखना चाहिए, क्योंकि यह कहा गया है, कि राजा अपने अधिनस्तों की कर्म- प्रतिक्रियाओं के आठवें भाग के भागीदार होता है . क्या राजा होना अच्छा हो सकता है? जरा सोचो: जितने अधिक मातहत आपके है, उतनी ही और अधिक कर्म – प्रतिक्रियाएँ आपके सिर पर आ पड़ेगीं . इसलिए मातहतों को नियमों का पालन करना चाहिए. और राजा को अपने काम अच्छी तरह से करने हैं . हम भगवा की पूजा राजा के रूप में भी करते हैं . कृष्ण हमारे परमेश्वर है और वे हमारे राजा भी हैं . इसलिए हमने उनके सिर पर मुकुट रख दिया है .लेकिन वे एक सांसारिक राजा नहीं हैं , जो आपके कर्म से केवल आठवां भाग ले रहे हैं . वह एक अतीन्द्रिय राजा हैं , दिव्य राजा हैं , वह आपके कर्मों से सौ प्रतिशत ले सकते हैं. क्या यह अच्छा है कि इस तरह के एक राजा के अधीनस्थ हों ? क्या हम उसे अपने करों का भुगतान करने के लिए तैयार हैं ? वे एक अच्छे राजा हैं . मनुष्य के लिए तीसरी भूमिका – एक प्रेमी की है. क्या आप कभी इस प्रकार के प्रेमियों से मिले थे? मध्ययुगीन ट्रूबदोर( कलाकार और संगीतकार)की तरह? इस इक्कीसवीं सदी में यह एक पुराने प्रतिरोध की भांति है. लेकिन इन प्रेमियों में शारीरिक प्रेमी नहीं थे. वे आध्यात्मिक प्रेमी थे. एक प्रेमिका के बिना कोई प्रेमी नहीं हो सकता है. एक प्रेमी के रूप में हम कृष्ण की पूजा करते हैं . प्रेमियों की विभिन्न श्रेणियां होती हैं. कुछ लघु क्षमता वाले प्रेमी होते हैं. वे पवित्र प्रकार के होते हैं , वफादार प्रकार के . वे केवल एक ही प्यार करते हैं. इसके बाद मध्यम क्षमता वाले प्रेमी हैं, और वे अधिक से अधिक प्यार करने का प्रयास करते हैं . लेकिन आप जानते ही हैं , मानव क्षमता सीमित है,लेकिन भगवान की क्षमता सीमित नहीं है. कृष्ण इतने आकर्षक हैं , कि न केवल एक, दो या कुछ महिलायें उनके पीछे भाग रहीं हैं बल्कि तीनों लोकों की सभी देवियां उन पर आसक्त है. हो सकता है की सुनने में यह थोडा सा लज्जाजनक हो कि आपको भगवान से प्यार हो गया. लेकिन हम यह तब अधिक समझते हैं जब महिलाएँ परमेश्वर के प्रतिनिधियों के प्यार में पड़ जाती हैं . आप प्रतिनिधि द्वारा आकृष्ट हो जाती हैं . क्यों? क्योंकि वह किसी का प्रतिनिधित्व करता है. और अब, बहुत अधिक विस्तार में जाने के बजाए. महिलाओं की अपेक्षाएं काफी हैं. और उन अपेक्षाओं को केवल एक देवता कभी कभी पूरा कर सकता! धरती का कोई ऐसा मानव नहीं है जो उन अपेक्षाओं को पूरा कर सके. इसलिए हम इस तरह से भगवान की पूजा करते है, कि वे हम सभी को आकर्षित करने में सक्षम हैं . वे सुप्रीम प्रेमी हैं और हम उनकी सुप्रीम प्रिया हो सकते हैं …. हो सकता है वैसी सर्वोच्च/सुप्रीम नहीं , लेकिन हम भी उनके प्रिय हो सकते हैं.यह मानव प्रकृति का रोमांटिक पहलू था. अब क्या रह गया है?रहस्यवादी भूमिका.
रहस्यवादी भूमिका जादूगर की है. जादूगर, साधु, या महापुजारी – यह एक इंसान की रहस्यमय भूमिका है. वह प्यार के पीछे नहीं भाग रहा है, वह सत्ता के पीछे नहीं भाग रहा है,वह प्रभुत्व के पीछे नहीं भाग रहा है. लेकिन वह भगवान के मिलन के पीछे भाग रहा है,”Unio mystica” – रहस्यवादी एकीकरण, सुप्रीम से कैसे मिला जाए . यह चौथी भूमिका मानव के लिए सर्वोच्च मानी जाती है. और हम कृष्ण की पूजा सबसे बड़े जादूगर के रूप में करते हैं सर्वोच्च जादूगर के रूप में
एक बार एक जादूगर कृष्ण-बलराम मंदिर में आया श्रीला प्रभुपाद जी से मिलने . [*] यह वृंदावन में घट रहा था, और तुम्हें पता ही है, वृन्दावन में, वहाँ कुछ अच्छे जादूगर हैं .पर इस आदमी ने अचानक, कुछ कीमती पत्थरों को निकालना शुरू कर दिया. पहले वह केवल, श्रीला प्रभुपाद के कानों से रुपए निकल रहा था. तो वह मजाक उड़ा रहा था .भक्त थोड़ा शर्मिंदा हो रहे थे, लेकिन प्रभुपाद हँस रहे थे और इस शो का आनंद ले रहे थे . और फिर,अचानक, उन्होंने अपना मन बदल लिया . और कहा: “नहीं. आपका जादू मेरे जादू की तुलना में कुछ भी नहीं है. क्योंकि आप कुछ रुपये और पत्थर बना सकते हैं.लेकिन मैं बदल सकता हूँ , मैं परिवर्तित कर सकता हूँ, मैं मौत से इन लड़के, लड़कियों को बचा सकता हूँ . मृत्यु से मैं उन्हें अमरत्व की ओर ले जा सकता हूँ . “मृत्योर मा अमृतं गमय .सीसा.सकते हैं. मृत्यु से अमरत्व की ओर – यह असली जादू है. इसलिए इस चौथे प्रकार को सर्वोच्च माना जाता है. और हम कृष्ण की पूजा सरवोछ जादूगर के रूप में करते हैं .क्योंकि उनके लिए असंभव भी संभव है.
मुझे लगता है कि अगर हम सब सहमत हो कि भगवान सबसे अच्छे सेनानी हैं -वह तुम्हारे लिए लड़ते हैं , वह तुम्हारी मुक्ति के लिए लड़ते हैं , अगर हम सहमत हैं कि वे सबसे अच्छे राजा हैं , वे तुम्हारा पूरा ख्याल रखते हैं , अगर हम मान लें कि वे सबसे अच्छे प्रेमी हैं , मैं उनकी ओर आकृष्ट हूँ : और यदि हम मान सकें कि वे सबसे अच्छे जादूगर हैं , वे मुझ पर एक दिव्य जादू कर सकते हैं -तो हम क्यों न , खुद को एक ऐसे प्यारे और प्रभावशाली देखभाल के लिए प्रस्तुत कर दें ?!
[*] श्री श्रीमद अ. च. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (1896-1977) – आध्यात्मिक गुरु, ईश्वरीय प्रेम के महान उपदेशक,जिन्होंने पश्चिमी दुनिया में भक्ति का प्रचार किया. इंटरनेशनल सोसायटी फॉर (इस्कॉन) कृष्ण कोंशस्नेस (इस्कॉन) के संस्थापक.