Sharanagati

Collected words from talks of Swami Tirtha




(श्री भ.क. तीर्थ  महाराज  के व्याख्यान से उद्धृत , ३ सितम्बर.२००६,सोफिया )
. दृष्टि की पूर्णता  सौन्दर्यावस्था होनी चाहिए | तो पालने से कोई देख रहा और प्रतीक्षा कर रहा है की सबसे सुन्दर चीज़ उसके पास आ रही है |और तब उसे उसकी बंद आँखों का हर्जाना मिल जाता है ,उसे लगता है ,”यह अच्छा है,पर यह साकार सौंदर्य नहीं है “अत:जब वास्तविक सौन्दर्य प्रकट होता है ,वह उसे अनुभव करती है -तब वह आँखे खोलने को तैयार है |
.इस प्रकार सौंदर्य तो आ रहा है,पर पालने में कौन छुपा हुआ है? वह है -परम प्रेम|प्रेम,दैविक प्रेम,दैविक सौन्दर्य के लिए आँखे खोलता है |यही भक्ति का आरम्भ है,यह दैविक प्रेम सम्बन्ध का आरंभ है | वृन्दावन में यह सत्ता मीमांसा सम्बन्धी स्थिति है -ऐसा कहा जा सकता है | यह काफी रूखा प्रतीत होता है |फिर भी यदि यह आरम्भ है तो अंत भी यही होना चाहिए -यदि आप भक्ति -योग को व्यव्हार में लेट हैं तो आप के साथ ऐसा ही होना चाहिए | हमें अभ्यास करना चाहिए और हमें हमारे हृदयों में होने वाली चीजों के लिए प्रार्थना करनी चाहिए -दैविक प्सौन्दार्य ,दैविक प्रेम से हमारे ह्रदय में ही मिलता है |यही राधा-कृष्ण आराधना है , आपके हृदय में|यही तरीका है की आप किस पराक्र अपने ह्रदय के बाहर एक मंदिर बनाएं|ह्रदय के शुद्धिकरण  द्वारा,उसकी  स्वच्छता द्वारा| हमारे जीवन में और हमारे हृदयों में राधा और कृष्ण के मिलन हेतु हमें उचित एवं सही स्थिति बनानी चाहिए |
और निश्चित रूप से  अंतत: उनका सम्बन्ध बढ़ रहा था और   एक विशेष स्तर तक पहुँच रहा था t |लेकिन फिर, इस सम्पूर्णता के बाद, वियोग  भी सामने आया |हालांकि वे मिले थे, वे अलग हो गए थे. यहां तक कि जब  वे  मिल रहे थे , उस समय फिर से अलग होने का डर था |मुझे लगता है कि आप ने भी यह महसूस किया होगा – जब आप कुछ बहुत अच्छा समय बिताते  हैं , कुछ  बहुत अच्छी संगत होती  है, लेकिन आप के  दिमाग में कंही  थोड़ा डर होता  है कि हो सकता है यह कुछ समय  बाद समाप्त हो जाए |. भक्ति शास्त्रों में यह  डर बहुत स्पष्ट रूप से वर्णित है|   तो जब वे एक साथ हैं , अलगाव  का डरहै. लेकिन जब वे अलग हो रहे हैं,वे फिर से मिलन की भावना है. मिलन , प्रभु मिलन – ईश्वर  से  मिलन |
इसलिए हम कह सकते हैं: चाहे आप एक साथ हों  या अलग हो r – यह एक  है!यह गहन भावनाए हैं .,और मैंने , पिछली बार भारत में दो चित्रों के साथ ,एक जांच की |उसमें से एक में राधा थीं ,अकेली,कुछ उदास सी ,और दूसरे में राधा और कृष्ण एक दूसरे के करीब|  और मैं जब किसी भी भक्त से वंहा मिलता,तो पूछता,” आप क्या चाहेंगें ,आपको क्या ज्यादा अच्छा लगेगा –संभोग  या विप्रलंभ  (मेल  या अलगाव)? और वे सभी जो  वैष्णव शिष्टाचार और दर्शन में अति शिक्षित थे, उन्होंने कहा: “विप्रलंभ  (जुदाई).” पुरुष श्रद्धालुओं में से अधिकांश ने कहा: “. विप्रलम्भ”  |लेकिन जब भी में वृन्दावन आया  और विशेष रूप से जब मैंने  महिला भक्तों से पूछा: “आप संयोग  या अलगाव क्या  पसंद करती  हैं ? उन्होंने कहा:”मिलन “
जो भी हो,वे साथ हों या अलग,हमें उनके मिलन के सौंदर्य की स्तुति करनी चाहिए |यदि उनका ये मिलन , हमारे ह्रदय,हमारे जीवन में घटता है हमारा जीवन  परिपूर्ण हो जाता है |
.आप को इस कहानी का सांकेतिक अर्थ भी समझना चाहिए क्यूंकि कृष्ण न कवं सम्पूर्ण सौंदर्य को प्रतिनिधित्व करते हैं ,बल्कि वे ज्ञान को भी प्रस्तुत करते हैं |राधिका न केवल दैविक प्रेम हैं ,वर्ण भावनाए,संवेग भी हैं |तो जैसे मस्तिष्क,सर और ह्रदय,जब वे साथ हैं,तो अनुरूपता है, ठीक है ?पर जब बुद्धि  और ह्रदय अलग हैंतो यह एक बहुत बड़ी समस्या है |कुछ दर्द प्रकट होगा |अत:शुद्धिकर्ण की प्रक्रिया या स्व-बोध ,दोनों का लक्ष्य सु-बुद्धि या सु- ह्रदय का मेल होना चाहिए |और हम तो निसंदेह शुद्धतम दैविक सम्बन्ध के बारे में बात कर रहे हैं |हमें इसे किसी भौतिक ,सांसारिक सम्बन्ध से नहीं जोड़ना चाहिए |


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