Sharanagati
Collected words from talks of Swami TirthaOct
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(श्री भक्ति कमला तीर्थ महाराज के व्याख्यान से , २ सितम्बर २००६ , सोफिया )
अधिकांश मामलों में ,प्रार्थना,बौद्धिकता से सम्बद्ध है,और किन्ही खास, अच्छे मामलों में यह ईश्वर के प्रति भावनात्मक रुदन है |ध्यान ,वह है ,जब आप स्वयं को इतना रिक्त कर देते हो कि आप स्व-नियंत्रण से मुक्ति पा लेते हैं ,ताकि वह आप पर नियंत्रण रख सके |जैसे कि हम चर्चा कर रहे थे,आप अपनी प्रार्थना में उस पर नियंत्रण पाना चाहते हैं,किन्तु वास्तविक ध्यान की स्तिथि में ,आप चाहते हैं कि उस का आप पर नियंत्रण हो | अंतर यही है | .
ध्यानावस्था में,कहा जा सकता है कि आप धैर्यवान प्राप्तकर्ता(लेनेवाले )हैं–जो आमंत्रित करता है, लेने की कोशिश करता है,समझने का प्रयास करता है ,प्राप्त करने की कोशिश करता है | प्रार्थना में आप स्वयं को प्रस्तुत करते हैं,अपनी उर्जा (शक्ति)को अर्पण करते हैं,अपने शब्दों का अर्पण करते हैं ,अपने विचारों का अर्पण करते हैं |
यदि आप शुद्ध भाव से ,जिस भी तरह अभ्यास करते हैं,तो हम यह नहीं कह सकते कि दोनों में से कौन सा उच्च स्तरीय है और कौन सा निम्न – श्रवणं अथवा कीर्तनं ?दोनों ही ठीक हैं | पहले हम सुनते हैं फिर जप करते हैं |पहले आप प्रार्थना करते हैं ,फिर ध्यान |यह क्रम बदल सकता है | सभी विभिन्न तत्व अच्छे हैं |
. लेकिन जब आप हतोत्साहित (दुखी ) होते हैं समस्याओं से घिरे होते है ,तब आप कितनी अच्छी तरह से प्रार्थना करते है ..ऐसा ही है न ? हो सकता है ऐसे में ध्यान लगाना मुश्किल हो |आप अपने विचारों के प्रवाह को रोकना चाहते हों , यह एक बड़े तूफ़ान की भांति आपके सर में घूम रहा होता है | ऐसे में आप ध्यान नहीं लगा सकते -पर आप प्रार्थना कर सकते हैं ! यह अलग है ,थोडा सा अलग |
अत: आपके समूह में यदि कोई अच्छा व्यक्ति है जो प्रार्थना करता है ,जिसकी प्रार्थना प्रभु द्वारा सदैव सुनी जाती हैं ,आप उससे सम्पर्क करें ,” ओ भाई , मेरे लिए भी थोड़ी प्रार्थना करो ना !! और अगर ऐसा व्यक्ति है जो अच्छी प्रकार से ध्यान लगाता हो ,तब आप उससे ध्यान लगाना सीखें |यदि कोई मंत्रोचारण (जप) अच्छी प्रकार से करता है तो उससे जप करना सीखना चाहिए, इत्यादि | यदि कोई गुरुसेवा अच्छी तरह से करता है तो हमें उससे गुरुसेवा किस प्रकार सुन्दर तरीके से की जाए ,यह सीखना चाहिए |ठीक है ! यही तरीका है | इसीलिए गोड़िया मठ में भक्त गुरु के अवशेषों के लिए संघर्ष ना कर के ,एक शिष्य के द्वार पर प्रतीक्षा कर रहे थे.जो अपने गुरु के प्रति बहुत ही समर्पित था |वे कुंजबिहारी विद्याभूषण जी के महाप्रसाद के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे ,ताकि वे भी गुरु के प्रति वही समर्पण भाव प्राप्त कर लें ,जो उनमें था |
.लेकिन ,कृपया एक-दूसरे की थाली से प्रसाद छीनने की चेष्टा न करें ! अरे !मैंने तो उस उपदेश में सुना था कि ऐसा लेने पर …..”और आप हर थाली से इकठ्ठा करते रहे -“दामोदर अच्छा जप करता है ,वह गाता अच्छा है,वह वो करने में अच्छी है …और ऐसे तो मैं सर्वोत्तम बन सकता हूँ !”पर यदि आप को किसी सहायता की आवश्यकता है ,आपको कुछ मार्गदर्शन,परामर्श की आवश्यकता है ..तब आप को पता होना चाहिए कि वह कहाँ से मिलेंगे |
बस उन भक्तों के पदचिन्हों का अनुसरण करो ,जिनकी प्रार्थनाएँ प्रभु द्वारा सुनी जाती हैं ,उनसे थोड़ी पड़-रज ले लो | तभी तुम भी इसे प्राप्त करोगे |यही हमारी प्रार्थना है |