Sharanagati
Collected words from talks of Swami TirthaSep
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(श्री भ .क. तीर्थ महाराज के “चैतन्य चरित्रामृत ”, अन्त्य -लीला ,चतुर्थ अध्याय पर आधारित व्याख्यान से
२८ मई २००६ , सोफिया )
सनातन कहे बले कैला उपदेश
तहा जव सेई मोरा प्रभु दत्त देश
यह भाव बहुत महत्वपूर्ण है ,अत: आपसे अनुरोध है : इसे याद रखें :“प्रभु दत्त देश ”. “देश ” अर्थात “स्थान “; “प्रभु दत्त ” अर्थात “ईश्वर प्रदत्त”,प्रभु प्रदत्त स्थान ,हम ऐसा भी कह सकते हैं | आप को अपनी सेवाओं से जुड़े रहना चाहिए | यदि ईश्वर या हमारे मास्टर हमें कुछ सेवा करने को देते हैं तो हमें उस सेवा से जुड़े रहना है You should stick to your service. Because if God, or our master, gives us some service – this is प्रभु दत्त देश है हमारे लिए | और में आप को बताना चाहता हूँ कि सोफिया मेरे लिए प्रभु दत्त देश है क्योंकि मेरे मास्टर ने मुझे यहाँ सेवा हेतु आने को कहा ,भक्तों से मिलने को कहा | अत: मैं आप सभी का अति आभारी हूँ कि आपने इस स्थान को बनाया और बढाया ताकि मुझे किसी खाली जगह पर नहीं जाना पड़े ,बल्कि मैं यहाँ आ सकता हूँ और देख सकता हूँ कि आपका अनुराग बढ़ता जा रहा है | एक समय वो भी था ,जब मुझे ,सोफिया के प्रति अपने जुडाव को प्रदर्शित करना पड़ता था ,वह भी किसी स्वार्थपूर्ण भाव से नहीं ,बल्कि इसलिए क्योंकि यह मेरे लिए प्रभु दत्त देश है | यह मेरा स्थान नहीं है ,यह मुझे दिया गया है | आप इसका अंतर समझ सकते हैं ? यह मस्ती का स्थान नहीं है | यह सेवा का स्थान है ,और आप को अपनी सेवा से जुड़े रहना चाहिए |
पारंपरिक काल में भक्त कभी भी गुरु द्वारा दी गयी सेवा का त्याग नहीं करते थे | लेकिन अब तो वह पुराना समय नहीं है | अधिकांश व्यक्ति उस शास्त्रीय भाव के लिए तैयार नहीं हैं |तब भी इस भाव को याद रखें – प्रभु दत्त देश .और जब आप को अपने जीवन में अहसास हो जाए कि आप का प्रभु दत्त देश क्या है ,तब उस पर अपना ध्यान केन्द्रित कर लें और इस सिद्धांत का पालन करें | यह विश्वास और आदर पर आधारित है , “मुझे जो दिया गया है ,उसका पालन करना है I ”
प्रभु दत्त देश -आप सोच रहे होंगें कि यह केवल एक विशेष कर्तव्य या सेवा है | यह सही है ! लेकिन मूल रूप से ,असल प्रभु दत्त देश क्या है ? आध्यात्मिक मास्टर द्वारा दी गई असली सेवा क्या है ? वापिस जाओ,घर जाओ , भगवान के पास जाओ !
अत: एक प्रकार से प्रभु दत्त देश स्थित है.. आप एक स्थान पर जाते हैं–और ये वही जगह है | किन्तु यदि हम अपनी समझ को बढ़ाते हैं तो हम समझ पाते हैं कि हमारा सारा जीवन ही इसी प्रकार का होना चाहिए |जो कुछ भी हम करते हैं ,वह ध्यानसे और सेवा हेतु किया जाना चाहिए |
और यदि आप हमेशा श्री कृष्ण और श्री गुरु के ध्यान व निर्देशन में कार्य करते हैं तो यह एक प्रभु दत्त देश होगा | . इसका मतलब है कि उन्होंने हमें एक जीवन दिया है ,कुछ जगह दी ,कुछ समय दिया ,जिससे हम अपनी प्यार भरी सेवा और हमारा आभार दर्शा सकें |हे मेरे प्रभु ,आप ने मुझे यह जीवन -काल दिया है ,ताकि मैं इसका उपयोग आपके लिए करूं , प्रभु दत्त देश एक अति विशिष्ट कर्त्तव्य /कार्य हो सकता है या आपका सम्पूर्ण और समस्त जीवन हो सकता है | विशिष्ट से आरम्भ करो और उसके बाद सामान्य की ओर प्रसार करो |
भाव इस प्रकार है : “प्रभु दत्त देश ” – ” प्रभु द्वारा दिया गया ,मास्टर द्वारा दिया हुआ ”. इस प्रकार यह “ सेवक द्वारा प्राप्त ”,नहीं है ,बल्कि “ ईश्वर द्वारा दिया गया ” है ,लेकिन यह एक निश्चित केस है ,एक विशिष्ट परिस्थिति , अन्यथा जब हम अपनी जिन्दगी जीते हैं और अगर हम समझ पाएं कि हमें अपनी जिन्दगी पूर्ण सत्य हेतु जीनी है ,तब यह हमारी जिन्दगी का रूपांतर होता है | मुझे पता है कि मेरा अस्तित्व ,किसी बड़े उद्देश्य की प्राप्ति हेतु प्रदान किया गया है I जब यह आप अपने मास्टर से प्राप्त करते हैं ,तो यह निश्चित केस है,विशिष्ट केस है | जब आप इस प्रकार के सम्बन्ध से नहीं जुड़ते हो — आप के मास्टर आप को कोई विशिष्ट काम नहीं देते हैं -या आप का कोई मास्टर ही नहीं है – जैसा कि आमतौर पर लोगों के साथ होता है — और फिर भी यदि आप समझ जाते हैं कि जीवन ईश्वर के लिए जीने के लिए है ,तो यह परिवर्तन है ,और इस प्रकार आप अपने जीवन के लिए एक अलग आयाम प्राप्त कर पाएगें |
लेकिन प्रभु दत्त देश कुछ निर्देश देने का , कुछ कार्यों के परिवर्तन का अथवा कुछ शक्तियों को दूसरों को सौपनें का अति विशिष्ट कृत्य है |