Sharanagati

Collected words from talks of Swami Tirtha




(भ.क.तीर्थ महाराज के व्याख्यान से ,२५ मई २०१०,सोफिया से)
प्रत्येक  मनुष्य  के  जीवन  का  एक  उद्देश्य  होता  है और यह कष्ट उठाना नहीं यह  अपने  जीवन   को  भौतिकता   में  खोना  भी  नहीं  है |अपने समय को व्यर्थ के कार्यों में बर्बाद करना भी नहीं है,वरन इसका उद्देश्य -अपनी चेतना को मलिनता से मुक्त करना तथा अपने ह्रदय की भावनाओं को उस   प्यार करने वाले ईश्वर के प्रति  व्यक्त करना है|
मनुष्य  अर्ताथ   दैविक व्यक्तित्व!(ईश्वरी स्वरुप )|बाइबल में हमने पढ़ा है कि ईश्वर ने मनुष्य की रचना अपने ही रूपानुसार की है|भारत के पवित्र शास्त्रों में से एक “श्रीमदभगवतगीता” में भी यही कहा गया है|विभिन्न  प्रकार के   समस्त जीवित प्राणियों में मनुष्य मात्र ही ईश्वर का आवास  है अर्थात ईश्वर मनुष्य में निवास करता है|उसका आवास परम लोक भी है और मानव भी|
इसका यह भी अर्थ है कि देह मंदिर के समान है,क्योंकि देह ईश्वर का घर है.जिसका निर्माण विशेषतः उसी के लिए हुआ है |हमारी देह उसी के लिए बनी है,तो हमारी देह का यही  अध्यात्मिक प्रयोग है कि हम इसे पूजा के लिए प्रयोग करें| इसका प्रयोग .इश्वरीए पूजा और आत्म-लाभ हेतु  हो |
और यदि एक घर किसी को समर्पित किया हुआ है तो उसके कुछ परिणाम भी होते हैं.क्यूंकि तब हमें और भी अधिक जागरूक रहना चाहिए…मेरा शरीर,मेरी गतिविधियाँ,मेरे विचार,सभी उसी के हैं, और यदि मैं इसके प्रति जागरूक रहता हूँ ,यदि मैं इस स्तिथि के प्रति सचेत रहता हूँ तो मैं गलत  नहीं हो सकता,बुरा व्यक्ति नहीं हो सकता,क्योंकि यदि ईश्वर है और वह मेरे साथ है,तब मुझे अच्छा व्यव्हार करना ही है. ठीक उसी प्रकार ,जिस प्रकार तुम सोचते हो कि तुम अकेले हो.और सोचते हो कि ..अब मैं सब कुछ कर सकता हूँ,कोई कुछ नहीं देख रहा.परन्तु जब तुम किसी के साथ होते हो ,तब तुम्हारा व्यव्हार अच्छा हो जाता है.इसी प्रकार ,जब तुम जानते हो कि तुम ईश्वर,कृष्ण  के सतत  संपर्क में हो तो सर्वप्रथम हमें मन से सोच विचार कर ,उचित व्यव्हार करना चाहिए-पहले जानबूझकर,फिर स्वाभाविक रूप से. इन दोनों के बीच का परिवर्तन ही शुद्धिकरण प्रक्रिया है.
अपने समस्त संसाधनों  का  उपयोग उच्च प्रयोजन के लिए करो.यदि तुम्हारे पास धन है,इसे अच्छे कार्यौं/उद्देश्य  में लगाओ.यदि शरीर है तो इसका प्रयोग  दैविक प्रयोजन के लिए हो-आत्म बोध के लिए .यदि तुम्हारे पास इन्द्रियां हैं तो शुद्धि के लिए उनका प्रयोग करो.यदि तुम प्रतिभाशाली हो तो इसका प्रयोग ईश्वर की  स्तुति के लिए करो.तुम्हारे पास जो कुछ भी है ,इसे उसी को समर्पित कर दो. आखरीकर हमारे पास जो कुछ है -हमारा शरीर ,हमारी प्रतिभा,हमारा सबकुछ, उसी का ही  है.यदि हम अपने और उस के मध्य  संपर्क साध लेते हैं तो  आध्यात्म  की ओर  यही सर्वाधिक उचित मार्ग है.


Leave a Reply