Sharanagati

Collected words from talks of Swami Tirtha




(श्री भ .क.तीर्थ  महाराज के व्याख्यान से ,२७ मई २००६,सोफिया )
भगवान जगन्नाथ नियम और अधिनियम से बंधें हुए नहीं हैं,इस की मिसाल देने के लिए एक कहानी  है, तो ब्रह्मचारियों ,बहाने  ना बनाना ! जगन्नाथ  पुरी में एक नवयुवक रहता था ,ईश्वर का अनन्य भक्त पर स्त्रियों के प्रति वह थोडा आकर्षित रहता था |  सारे समय वह कभी इसके ,कभी उसके पीछे भागता रहता था ,कभी कभी वेश्याओं के पास भी जाता था |  यह एक बुरी आदत उसे थी,शरीर  से जुडी हुई ,पर साथ ही वह सदा भगवन जगन्नाथ की  प्रार्थना एवं अर्चना करता रहता था |
एक बार एक रात में , वह एक औरत के पास  था , और वह रात रथयात्रा  महोत्सव के दौरान थी , तो दिन में भी वह उस महिला के पास रूका रहा और इस बीच यात्रा आरंभ हो गयी |  आरंभ हुई ,,आगे बढ़ी ..पर अचानक ही  रथ रूक गया  ,और आप जानते ही हैं,रथ का  रूकना  मतलब गंभीर समस्या हो गयी , .क्यूंकि ब्रह्मण (पंडित ) समझ नहीं पा रहे थे ,कि क्या हो रहा है ? वे पवित्र और अनुशासित ब्रह्मण ,जो रथ पर  बैठे हुए थे,जो हर विधि-विधान को पूरी तरह पालन करते हैं..वे रथ को हिला भी  नहीं पा रहे थे |  उन्होंने उसे आगे से खींचने का प्रयत्न किया,,उसे पीछे से धकेलने का प्रयत्न किया ..हर तरह से कोशिश की | फिर उन्होंने प्रार्थना करनी शुरू कर दी –,” हें ईश्वर ! आप ही बताओ,ये क्या हो रहा है ? ” हमें तो  आपके स्थान  पर जाना है,हम यहाँ  ज्यादा देर तक नहीं रुक सकते , इस तरह तो हम रास्ता रोक रहे हैं ,पुलिसे आ जाएगी ,हम अब क्या करें? ” और तब भगवन जगन्नाथ ने पुजारी को प्रेरणा दी -” मेरे उस भक्त को बुलाओ ” और जैसे  ही ,वो उस वेश्या के घर से निकला और  उस जगह  पर  ,रथ के पास पहुंचा ही था कि रथ चल गया |
अत: इसे  किसी  बहाने की तरह मत लेना ,”कितनी सुंदर कथा है ,मैं भी उसी का अनुसरण करूंगा , इस तरह  मेरे भगवन की मेरे ऊपर कृपा दृष्टि रहेगी !” नहीं,कृपया इस तरह  बिलकुल नहीं करना | पर यह सिर्फ इतना दिखाता है कि वे  उन नियमों से बंधे  नहीं हैं  ,जिनका आपको पालन करना चाहिए |वे  जिस को चाहें  ,उसे चुन सकते  हैं  |  हो सकता है ,कोई बहुत प्रसिद्द भक्त हो,पर कृष्ण उसकी संगत से उतने संतुष्ट न हों ,जितने कि किसी साधारण ,क्षुद्र ,मूर्ख,अनजान भक्त से हों |
.तो हम कृष्ण को बांध नहीं सकते ,और साथ ही उन्हें विवश भी नहीं कर सकते |इसलिए उनके भक्तों से  अच्छे से  व्यव्हार करना चाहिए ,क्यूंकि क्या पता ,वही  व्यक्ति कृष्ण को सबसे प्रिय हो |
इसका एक और ,बहुत सुन्दर उदाहरन  है ,जब श्रीला प्रभुपाद , वृन्दावन में व्याख्यान दे रहे थे !  बड़े-बड़े उपदेशक ,सन्यासी और ये भी और वो भी , सब उनके सामने बैठे हुए थे | पता है ,यह  बिलकुल दंडा के जंगल की तरह लग रहा था | और कहीं पीछे एक महिला मंदिर की सफाई के लिए पानी ला रही थी | प्रभुपाद जी ने अपने मुख्य उपदेशक-भक्तों को समझाया |उन्होंने कहा “आप भक्ति के बारे में कुछ नहीं जानते ,पर वह स्त्री -वह कुछ तोजरूर  जानती है |”
अत :उच्चपद,रूप  से एंठो मत  क्यूंकि हमें नहीं पता कि कृष्ण के हृदय में क्या है ?उनका सर्वप्रिय कौन है ?
क्या में अपनी कहानी भी सुना सकता हूँ ? यह  सीधी -सादी कहानी है ,कृष्ण से जुडी नहीं है |  पर जब मैं नंदा फलवा  में रहता था ,पास वाले फार्म में एक वृद्ध स्त्री रहतीं थीं |  वे बहुत तेजस्वी महिला थीं ,उन्हें ये भी नहीं पता था कि उनकी आयु कितनी थी |वे ये भूल गयी थीं | वे भक्तों को बहुत प्रिय थीं | जब भी उनके बाग में पहले  फूल खिलते  ,वे उसे मंदिर  में दे देतीं |  या जब उन्हें नगरनिगम से आटा या  चीनी  सहायता रूप में मिलती तो वे इसे भी भक्तों में बाँट देतीं …कितनी भली महिला !   मैं कभी कभी उनके पास जाया करता था  क्यूंकि मैं उन्हें बहुत पसंद करता था  और  कुछ  सरल ह्रदय (भले ) लोंगों से परामर्श करने के बाद मैं उनका  बहुत मान करता था |वे बहुत सालों से अकेली रह रही थीं  | लगभग चालीस साल पहले उनके पति का देहांत हो गया था | मृत्यु -शैय्या पर उनके पति ने कहा “सुनो!यहाँ किसी शराबी को ना ले आना|” उन्होंने इस बात को माना | उन्होंने इस प्रकार का कोई भी सम्बन्ध नहीं बनाया ,दो बेटों की परवरिश की  और घर के हर कर्त्तव्य को निभाया |अत्याधिक ओजस्वी महिला |
एक बार गर्मियों में,  मैं वहां  गया था और उन्होंने कहा ,” अरे!” मुझे नहीं पता कि हम सब में  से   पापी  कौन है | तब मैंने कहा ,” मरिश्का मौसी ,आप क्या कहना चाहती है ?”उन्होंने कहा ,”कोई तो बहुत पापी है,तभी तो बारिश नहीं हो रही !” तो उनके हिसाब से ,कुछ गलत कार्य करने का मतलब है ..बारिश नहीं होना |और अगर बारिश नहीं होती ,तो किसी ने जरूर कुछ गलत किया है | वे बहुत ही सरल-हृदया थीं |
एक और बार उन्होंने पूछा ,”तुम्हारे भगवन का नाम क्या है ?” और में बतया,” हमारे भगवन का नाम कृष्ण है |” और उन्होंने कहा,” पता है ,मेरे भगवन का नाम है इनरी ( INRI) क्योंकि क्रोस के ऊपर ,उस छोटी सी तख्ती पर लिखा है ,”I N R I” “Iesus Nazarenus Rex Iudaeorum” . INRI. – “ नाज़रेथ  वाला जीसुस ,  यहूदियों का राजा ”  ये क्रोस पर लिखा है ,,,उनके भगवान, इशु मसीह नही थे,बल्कि इनरी थे |
. और मैं बस सोच रहा था कि  अगर मैं भगवान होता,तो मुझे उनका साथ बहुत पसंद आता ,क्यूंकि वे बहुत ही सरल थीं ,बहुत बड़े दिलवाली ,बहुत आस्था रखने वाली थीं | कोई पेचीदा आध्यात्मविद्या सम्बन्धी डिप्लोमा नहीं था उनके  पास ,था सिर्फ पवित्र ह्रदय |
अतएव …ईश्वर उन्हें  ही चुनता है ,जिन्हें वह चाहता है |उपनिषदों में कहा गया है ,”बहुत अध्ययन से आप उस तक नहीं पहुँच सकते ,अपने परित्याग से ,इससे  या उससे लेकिन वह जिस किसी को चुनता है ,उसे थाम लेता है |”अत:,हमारा  इस तरह और कोई फ़र्ज़ नहीं बस यह कि हम उसे आमंत्रित कर लें | राधे राधे गोविंद !” …


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