Sharanagati
Collected words from talks of Swami TirthaJul
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(श्री भ. .क .तीर्थ महाराज के व्याख्यान से , २५ मई २००६ , सोफिया )
गुरु चिकित्सक की भांति है- वे आपके इलाज के लिए उचित तरीका इस्तेमाल करते हैं | आयुर्वेद में विभिन्न प्रकार के रोगी बताए गए हैं | चिकित्सक को रोगी की प्रकृति के अनुसार अलग – अलग तरह के तरीके इस्तेमाल करने होते हैं | आप इन विभिन्न प्रकार के रोगियों को जानते है? एक होते हैं बौद्धिक किस्म के | बहुत स्मार्ट,बहुत चतुर | वह स्वस्थ्य और इलाज के विषय में सब जानता है | इस प्रकार के लोग सबसे टेड़े होते हैं |इस तरह के लोगों को आपको तर्क से समझाना पड़ता है |अत:डॉक्टर को बहुत अच्छी प्रकार से तैयार होना चाहिए |
पर यह भी सबसे मुश्किल तरह के रोगी नहीं है | दूसरी श्रेणी “लड़ाकू “किस्म की है,जो डॉक्टर की हर हिदायत के खिलाफ ,सब कुछ करने को तैयार हैं | डॉक्टर कहते है ,”पीना नहीं है”और वह कहता है,”नहीं ,मैं तो पीऊंगा “| डॉक्टर कहते हैं ,”सिगरेट छोड़ दो “,”मैं कैसे छोड़ सकता हूँ,पिछले बीस साल से सिगरेट पी रहा हूँ,मेरी तो आदत पड़ गयी है |”और इसी तरह की बहुत सी चीजें |इस किस्म के लोगों से आपको लड़ाई लड़नी पड़ेगी ,आपको उसे युद्ध में ख़त्म करना पड़ेगा | बेचारा डॉक्टर !
तीसरी श्रेणी अंतत: बेहतर है–ये प्रेमी किस्म के होते हैं |इस किस्म के लोगों को प्यार से ये कहना ही काफी है,”आप ,कृपया ऐसा करें ” और वह वैसा ही करेगा |
ये हैं तीन तरह के रोगी,पर मैं आप को बताता हूँ कि ,शिष्यों की असंख्य श्रेणियां होती हैं| उनमे से मुख्य तीन प्रकार हैं : प्रथम ,जिनसे आपको बौद्धिकता से काबू लेना है,कुछ शिष्य होते हैं जो हमेशा प्रश्नों से भरे रहते हैं ,”गुरुदेव ,मेरा एक प्रश्न है !”उनके प्रश्नों का कोई अंत ही नहीं है| एक बार एक महाशय, भक्तों के एक समूह से मिलने गए और वंहा एक बहुत होशियार महिला थी |उसके पास एक कॉपी थी,जिसमे प्रश्न ही प्रश्न भरे हुए थे! कम से कम सौ प्रश्न ! इतने ज्यादा! पर याद रखो , यदि हम हर चीज़ का विश्लेषण करने या उसे समझाने का प्रयत्न करते हैं,तो हम उस विषय पर पानी फेर देते हैं | ठीक है न ! अगर हम बौद्धिक रूप इसको टुकड़ों में काट दें तो आखिर में कुछ शेष नहीं रहेगा | सिर्फ चीरफाड़ शेष रह जाएगी !
अगली श्रेणी ,जिसे बिलकुल ख़त्म कर देना है , वह अगली किस्म का शिष्य है — इसे नष्ट कर देना है | डॉक्टर , झूठा अहम् – वह ख़त्म करना है | तीसरी श्रेणी ,ज्यादातर शिष्य इस श्रेणी के होते हैं –आज्ञाकारी शिष्य | आप बस कहना है , “हरी बोल! ” और वह तुरंत कहेगा “हरे कृष्ण!” गुरु का रोल यही है – सही चिकत्सा-पद्धति का प्रयोग करना |बीमार शिष्य की प्रकृति के अनुसार उचित तरीके प्रयोग में लाना | वही हमारा डॉक्टर है | और हमें अपने डॉक्टर पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए ,क्यूंकि कभी कभी वे हमें काफी कड़े नियमों का पालन करने को कहते हैं | लेकिन अपने अध्यात्मिक मास्टर पर यदि हमें यह विश्वास है तो कठिन से कठिन से इलाज भी बहुत आसानी से होगा और अतिशीघ्र होगा |