Sharanagati
Collected words from talks of Swami TirthaDec
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(श्री भ .क .तीर्थ महाराज के व्याख्यान से उद्धृत , ३ सितम्बर २००६ सोफिया)
हमें कृष्ण के प्रति निष्ठावान होना चाहिए-यह भी कृष्ण भक्ति की एक परम्परा है – कृष्ण के प्रति निष्ठा |क्या आपको वो सेवक पसंद आयगा जो यहाँ- वहां जाता रहे |ठीक है? पर आप उस सेवक की प्रशंसा करोगे जो निष्ठावान है |सभी परेशानियों और मुश्किलों के बीच भी वो सेवा के लिए तैयार है | तो निष्टावान होना तो,जैसे की एक अवसर है -शिष्य के लिए या कृष्ण के एक उपासक के लिए – कृतज्ञता दिखाने का | अपने स्वामी के प्रति यह कृतज्ञता कैसे अभिव्यक्त कर सकते हैं? उनके प्रति निष्ठावान रहकर |”मैं आपका सनातन सेवक हूँ |आज से मैं आपको समर्पित हूँ |”
फिर हम पूछते हैं -कृष्ण ही क्यूँ ? और भी अन्य विकल्प है – प्रभु जीसस या भगवान शिव ,या ये या वो – कृष्ण ही क्यूँ ?क्यूंकि वह एक मनमोहक नवयुवक है ,जो बासुंरी पकडे हुए है ?हाँ !ये भी अच्छी पहुँच है क्यूंकि निश्चित रूप से वे मनमोहक हैं | पर यही सतही आकर्षण अगर है तो यह काफी नहीं है |
पर वे “श्रीमद भागवतम “में क्या कहते हैं ?वे कहते हैं,’सृष्टि से पहले भी मैं था और मेरे सिवाए कुछ नहीं था – ना प्रत्यक्ष न अप्रत्यक्ष , और न ही उससे परे कुछ था | इस प्रत्यक्ष जगत में भी जो कुछ आप देखते हैं ,वह भी मैं ही हूँ | प्रलय के बाद जो रहेगा,विध्वंस के बाद भी,सर्वदा मैं ही रहूँगा |” अत:- सृष्टि से पूर्व,सृष्टि के दौरान,विध्वंस के बाद,जो है ,जो रहता है,वो वह है | कृष्ण की आराधना करने का यही कारण है – क्यूंकि वे सर्वोच्च हैं , वे सर्वोच्च सत्ता हैं ,हमारे लिए वे अस्तित्व का सर्वश्रेष्ठ स्रोत हैं – सर्व कारण कारणं – सभी कारणों का कारण हैं |
और तुम्हें यह पता रहना चाहिए ,-वे ब्रह्मा को बताते हैं – वो सब कुछ जो इतना वास्तविक दिखाई देता है ,वह कुछ और नहीं वरन मेरी माया है |”माया दो प्रकार से काम करती है |एक प्रकार वो है जब (भ्रम)माया अवास्तविक को वास्तविक की भांति दिखाती है – और तभी वह हमें दिशाभ्रमित करती है | इसका दूसरा काम है -यह सत्य को ढांप देती है |जब कभी आप यह देखते हैं ,जब कभी इसे बूझते हैं ,तो आप को यह पता रहना चाहिए , आहा ! यह उसकी ही सत्ता है ,जो प्रभु से अलग नहीं है |”
और अंत में वे निष्कर्ष निकालते हैं ,” वे,जो आत्म ज्ञान की खोज में हैं ,उन्हें,समस्त परिस्तिथियों में,सभी काल में,सभी स्थानों में सर्वोच्च परम सत्य के विषय में जानना चाहिए |” अतएव हमें इस खोज को आगे बढ़ाना चाहिए – दैविक अदृष्ट और स्पष्ट:दिव्य प्रभु की खोज को |
तो जब हम पूछते हैं”कृष्ण ही क्यूँ ?”-तो यही कारण है | वे ही सूत्र है ,वे ही हेतु है ,वे ही निर्वाहक हैं और वे ही हैं-हमारे जीवन का मनमोहक सौन्दर्य |
कृष्ण ही क्यूँ,इसका कोई और स्पष्टीकरण है ? वह तत्त्व है ,मुझे तो रस दें |कृष्ण ही क्यूँ ? क्यूंकि राधा उन्हें प्रेम करती हैं |