Sharanagati
Collected words from talks of Swami TirthaJan
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(श्री भ .क .तीर्थ महाराज की ” दैन्य तथा प्रपत्ति” विषय पर टिप्पणी , ६ सितम्बर २००६ सोफिया)
हे मेरे प्रभु,मेरे कृपालु प्रभु,राधापति! तेरी जय हो,कितनी बार मैंने तुमेन्हे भुलाया,पर इस बार कृपा कर मुझे अपना लो !
कुछ समय पहले हम विचार -विमर्श कर रहे थे की किस प्रकार सही भाव से प्रार्थना की जाए| हमने विचार किया कि प्रार्थना के कई प्रकार हैं जैसे याचना ,प्रायश्चित के लिए प्रार्थना और ईश्वर स्तुति हेतु प्रार्थना !. यह गीत दोनों को ही जोड़ता है |यह एक भक्त कि दुखद कथा है ,”मैंने कितनी बार तुम्हें टाला है पर तुम मेरे प्रिय प्रभु हो और यद्यपि मैंने कितने ,ना जाने कितने जन्मों तक तुम्हारी उपेक्षा की है ,पर कृपा कर अब मुझे अपना लो |”इस गीत की प्रथम पंक्ति में आप प्रार्थना के विभिन्न तत्त्व पाते है ,जैसे याचना,मंगलकामना और प्रायश्चित के लिए प्रार्थना भी देख सकते हैं |”मैंने गलती की है पर अब कृपा कर मुझे अपना लो “पर महिमा गान भी है “तुम मेरे परम प्रिय प्रभु हो”तो जब भी हम प्रार्थना करें तो विभिन्न तत्वों को मिला लेना चाहिए |
और यह प्रार्थना कृपालु प्रभु के लिए है |तो यह अवसर है इस प्रार्थना के लिए ,उस व्यक्ति के लिए ,जो यह प्रार्थना कर रहा है कि दयालु प्रभु ,कृपालु प्रभु दया बनाए रखें | कृष्ण ईश्वर मात्र है| एक प्रकार से वे कर्मफल बांटते हैं,और वे इसे आपकी गतिविधियों के अनुसार निर्धारित करते हैं — वे आपको वह फल देंगे, जिसकी आप याचना करते हैं और जिसके आप हक़दार हैं |.पर तब उनको दोषी मत ठहराना|कहा गया है ,”बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होए ” अगर आप किसे खास तरीके से काम करते हैं तो आपको उसके परिणाम भी भोगने पड़ेंगें |कितने कर्म,कितने शब्द,कितने विचार ! ये वे बीज हैं जो आप अपने ह्रदयक्षेत्र में बोते हैं और जब ये बीज समय आने पर उजते हैं,अंकुरित होते हैं,और तब अचानक ही आपका ह्रदय खर-पतवार से भर जाता है और आप क्रंदन करने लगते हैं .”मेरे साथ कुछ गलत हो रहा है ! मेरे साथ ये नहीं होना चाहिए |”जबकि आपने खुद ही बीज बोएं थे|
और यदि भगवान न्याय कर रहे होते तो हमें अपनी उन सभी सभी गलतियों का मूल्य चुकाना पड़ेगा,जो हमने की हैं |कमोबेशी ये हमें करना ही पड़ेगा |पर भक्त चालाक होता है|वे सुनिवेशक हैं और वे अच्छे व्यापारी भी हैं आध्यात्मिक व्यापारी| तो वे जानते हैं कि,” ईश्वरीय न्याय से कुछ समस्या तो होने वाली है,मैंने कितनी गलतियाँ की हैं,तो मुझे तो मूल सूद समेत चुकाना पड़ेगा|”ऐसा ही होता है-आपके क्रियाकलापों में जो निवेशित होता है वह द्विगाणित हो जाएगा ,उसका फल मिलेगा तो अपना कर्ज बहुत बड़े रूप में उतारना पड़ेगा | इसलिए हम कृष्ण के कृपालु/दयालु रूप की आराधना करते हैं |. पर मन से धोखा देते हुए नहीं, अर्थात “मैंने गलती की हैं ,पर चलो अब भगवान के दया रूप की आराधना करूं क्यूंकि इस तरह मैं उसके साथ चल चल सकता हूँ की जिससे वह मुझे क्षमा कर दे और फिर मैं अपनी जिन्दगी जीता रहूँगा|”नहीं,यह नहीं चलेगा |आप दयालुता को धोखा नहीं दे सकते | कृपा बिना किसी शर्त के मिलती है|हम उसे विवश नहीं कर सकते |हमें समस्त अच्छे गुणों का पालन करना चाहिए,जैसे सेवा करने की इच्छा ,भक्ति,गम्भीर्त्या,नम्रता |पर आखिर में कृपा स्वयं आएगी |भक्ति की यह विशेषता है की यह स्वयं ही कार्य करती है|हम इसे बाध्य नहीं कर सकते ,धकेल नहीं सकते पर यह निश्चित रूप से सजीव है,यह एक अति शक्तिशाली अभ्यास है |कई बार हमें पता नहीं चलता कि यह काम कैसे करती है ,पर यह अथक है |अत:खुद ही काम करते हुए,शक्तिशाली,अथक और कैसे काम करती है -इसे समझने में मुश्किल हो — ये चार विशेषताएँ भक्ति प्रक्रिया की हैं |कृपा तो स्वयं ही आ जाती है |यदि कृष्ण कृपा को छेड़ रहे हों,तब भी वह आएगी,चाहे आप उसके लायक न भी हो | पर कृपा का यह प्रवाह हमें आज्ञापालन से बांध देता है| तब आप धोखे की प्रवृति नहीं रख सकते|हो सकता है कि आप किन्हीं गुप्त उद्देश्यों के लिए आये हो,पर जब आपने अनुभव कर लिया की दैवी कृपा क्या है तो फिर आप उस (धोखा ) प्रवृति को नहीं अपना सकते|
और इस गीत में एक भक्त की कितनी दुखद कहानी है? “मैंने तुमसे कई बार बचना चाहा है| दया मेरे पास आ रही थी , लेकिन मैंने कहा: “नहीं, धन्यवाद! यह मेरे लिए नहीं है. “मैं तुम से बचता रहा |”. ‘तुम उस वाक्य को कैसे कहोगे ? है, “मैंने तुमसे कई बार बचना चाहा है, लेकिन तुमने मुझे कभी नहीं त्यागा ” यह मानव और भगवान के बीच का अंतर है| मैं उसे छोड़ सकता हूँ , लेकिनवह मुझे छोड़ने के लिए तैयार नहीं है|गुरु के साथ भीऐसा ही है,शिष्य सदैव गुरु को छोड़ सकते हैं.लेकिन असली गुरु शिष्य को कभी नहीं छोड़ सकते,तो, अपनी स्वतंत्रता का आनंद लो ! बाद में यह बहुत देर हो चुकी होगी |.
तो, “मैंने तुमसे कई बार बचना चाहा है, लेकिन तुमने मुझे कभी नहीं त्यागा ” इसी समय से मैं अपनी मानसिकता बदल रहा हूँ|मुझे ले लो, मुझे अपना लो |” “क्या होता है अगर किसी को स्वीकार कर लिया जाए कि वह भगवान का है , भगवान से संबंधित है ? तब तथाकथित स्वतंत्रता, काल्पनिक स्वतंत्रता अवास्तविक स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है |. “कृपया मुझे स्वीकार लो ” यह एक बहुत ही अंतरंग प्रार्थना है. / “हे मेरेप्रभु, कई अलग अलग गर्भाशयों में भटकने के के बाद, आखिरकार मैं आ गया हूँ और आप की शरण में आ गया हूँ | कृपया, कृपया, आप दैविक दया से इस पापी आत्मा को मुक्त करा दें |. बहू जोनी भ्रामी – मैं कई प्रजातिय