Sharanagati
Collected words from talks of Swami TirthaJun
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(श्री भ. क. तीर्थ महाराज के व्याख्यान से उद्धृत , २००६ /११ /२६ , सोफिया )
आमतौर पर लोग परिभाषित करते है कि प्यार नि: स्वार्थ हो और उसमे देने का भाव हो, स्वतंत्रता देने वाला हो … आप सहमत हैं? आप को याद है ,संत पॉल की परिभाषा: इस तरह और उस तरह, कोई शिकायत नहीं , आज़ादी,विनम्रता … आप सहमत हैं? ऐसा कहने के लिए क्षमा करें , लेकिन इसका मतलब है कि प्रेम की पाठशाला में आप नौसिखिए हैं. क्योंकि यह अंकुश रखने वाला प्रेम उच्चतर है . स्वत्वबोधक प्यार उच्चतर है! लेकिन यह कहीं बाहर नहीं , बल्कि आपके ह्रदय में गहराई से रोपा हुआ हो .
और इसी भाव में ,अपने जीव,अपनी आत्मा हमारे प्रति ईश्वर का प्रेम इसी प्रकार का है जो स्वतंत्रता प्रदान करता है “आप मुझे छोड देना चाहते हैं?आप चले जाओ.” लेकिन हृदय की गहराई से , उनका प्रेम अधिकार रखने वाला है. “ओ प्रिय, कितनी दूर हो तुम! मुझे कितना इंतजार करवाते हो ! मैं तुम्हारे बिना मर रहा था … “उनके प्यार में अधिकार है. अंततः कृष्ण भी आप की संगत का आनंद लेना चाहते हैं.
एक बार वृन्दावन में ऐसा हुआ . चरवाहे गायों की रखवाली कर रहे थे . कृष्ण भी वहाँ थे और हर कोई खुश और पूरी तरह से संतुष्ट था कि वे अपने प्रिय मित्र , प्रभु के साथ है .अचानक एक नया चेहरा वृन्दावन में दिखाई दिया. कृष्ण इस नवागंतुक के पास गये
और कहा: “आपका घर पर स्वागत है … मैं बहुत खुश हूँ कि आप आ गये ! मुझे पता है कितनी मुश्किलें आप ने उठाई हैं . … “और नवागंतुक को गले लगा लिया.इस दिव्य स्पर्श से नवागंतुक बेहोश हो गया और कृष्ण भी बेहोश हो गए . सभी वरिष्ठ चरवाहे चकित थे. “वह कैसे हुआ ? यह नवागंतुक कृष्णा के गले लगने का आनंद ले रहे है? और यह बेहोशी/बेसुधी क्या है ? वह हमारे साथ तो कभी बेहोश नहीं हुए . हमने उसे गले लगाने की कोशिश की, लेकिन न तो हमें बेहोशी आई , और न ही उसे ! “लेकिन तभी बलराम को होश आया, वह इतना चकित नहीं थे . वे गए और उन्होंने कृष्ण को उठाया.तब कृष्ण ने अपने दास की महिमा गानी शुरू कर दी : “मैं जानता हूँ कि तुम मेरी तलाश कर रहे थे. तुमने भौतिक जीवन की सभी मुसीबतो को झेला है – विभिन्न ग्रहों पर लाखों जन्म लिए . जन्म-जन्मान्तर तुमने मुझे ढूँढा.मैं तुम्हारी संगत की कितनी प्रतीक्षा कर रहा था . मैं बहुत खुश हूँ कि तुम आ गए. “
यह कहानी क्या बताती है? यदि आप एक नवागंतुक हैं, तो आपका अधिक स्वागत है.चलो हम गोलोक वृन्दावन में नए चेहरे हों ! चलो हम सब एक साथ वहाँ हों ! और हम गोपालों के लिए एक छोटी सी मुसीबत बना दें … क्योंकि कृष्ण तुम्हारा इंतज़ार कर रहे है.
यह स्पष्ट है कि कृष्ण हमें बहुत प्रिय है. लेकिन आप को पता होना चाहिए कि आप भी कृष्ण को प्रिय हैं .