


Sharanagati
Collected words from talks of Swami Tirtha
Sep
17
( श्री भ .क .तीर्थ महाराज के व्याख्यान से ,२८ मई २००६ , सोफिया )
जब तक हम जान नहीं पाते ,तब तक हमें पूछना है | यदि आप जानते हैं ,तब भी पूछो ,क्योंकि हो सकता है कि आप गलत हों |कभी कभी हम,कुछ ऐसा करने के लिए बहुत दृढ निश्चयी होते हैं ,जो कि पूरी तरह से गलत होता है| इसका एक सुन्दर उदाहरण है : एक गोपाल, कृष्ण की मालिश कर रहा था ,वह बाएँ पैर पर मालिश कर रहा था ,वह आधे घंटे तक, फिर एक घंटे तक इसे करता रहा |कृष्ण सो रहे हैं | लड़का सोचता है : “मैं कृष्ण के बाएँ पैर की एक घंटे से मालिश कर रहा हूँ ,बहुत हो गया ,मैं अब दाएं पाँव की मालिश करता हूँ I” उसे पूर्ण विश्वास है कि यही सर्वोत्तम तरीका है ,अत: वह बाएँ तलुए को छोड़ ,दाएं को शुरू करता है और उसी क्षण कृष्ण जग जाते हैं : “नहीं बाएँ पाँव की ही मालिश करो |”
अत: कभी कभी हम बहुत दृढ निश्चयी होते हैं और हमें भली भांति पता होता है कि हमें क्या करना है |फिर भी जांचो | वस्तुत:आध्यात्मिक जीवन में सब कुछ किसी के निर्देशन में ही करना चाहिए |हमारी शाखा में ऐसा नहीं है कि आप लोई बाज़ार की किसी दुकान में गए,एक मूर्ति खरीदी और आराधना आरम्भ कर दी, नहीं ! यह सब आध्यात्मिक गुरु की देखरेख और निर्देशन में होना चाहिए | इस प्रकार की और भी चीजें हैं| वृन्दावन और भारत में बहुत से स्थान हैं जहाँ आपको जितने चाहें , उतने देवी देवता मिल सकते हैं | पर यह मूर्तियों का संग्रह नहीं है | अत: आध्यात्मिक गुरु की देख रेख व निर्देशन में,हमें अपनी सेवाएँ करनी चाहिएं |
हम बहुत तरह के लोग हैं ,भक्तों के विभिन्न व्यक्तित्व होते हैं,तरह- तरह के विचार होते हैं ,तो कोई तो होना चाहिए ,जो सारे विषय को केन्द्रित करे |अगर हर कोई अपनी सनक के पीछे भाग रहा है ,तो वहां सिर्फ गड़बड़ होगी ही | अव्यवस्था के बजाए हमें विश्व-व्यवस्था की ,प्रबंध की जरूरत है |और यह मिलता है इस भाव से कि हम हमेशा सलाह लें और हमेशा हर प्रकार की उन गतिविधियों को करने के लिए,जिन्हें हम करना चाहते हैं,उनके लिए आशीर्वाद अवश्य लें |
एक आज्ञाकारी शिष्य अब समझ चुका है कि उसे हर कदम पर आशीर्वाद की कामना करनी है | अत: वह मास्टर के दरवाजे पर दस्तक देता है : “क्या में अपने दांत साफ़ कर लूं?अपना आशीर्वाद दीजिए |” और गुरु उस पर दहाड़ते हैं : “बदमाश ,दूर हो,मेरी साधना को भंग मत कर !मूर्ख युवक ,तुझे कुछ नहीं आता!” तो— गुरुदेव ने कहा है उनसे न पूछा जाए – अगला निष्कर्ष|आप अपने कार्य करना आरम्भ कर देते हो और जब आप आश्रम को नष्ट कर चुके होते हैं और अगली बार जब गुरु आते हैं और पूछते हैं : “हे पुत्र ,ये तुमने क्या किया ?” “ हम इस सारे समान को उलटपुलट कर रहे थे और लोगों को यहाँ नहीं आने दे राहे हैं और उन्हें बुरा लगे ,ऐसी कोशिश कर रहे हैं ,और बस ,यही सब…लेकिन आपको .पता है कि मैं आप को तंग नहीं करना चाहता था | ” “बेवकूफ लड़के ,तूने कभी पूछा ही नहीं कि करना क्या है !”
अत: अपनी राय पर बहुत अधिक आसक्त न हो जाओ |उदहारण के लिए,एक बार श्रीला प्रभुपाद कुछ भक्तों के साथ यात्रा कर रहे थे | और आप जानते ही हैं ,अधिकतर , गुरु की उपस्तिथि में भक्त गंभीर रहते हैं ,अपना अच्छावाला चेहरा दिखने की कोशिश करते हैं,-अति विनम्र और सभी उत्तम गुणों को दिखाते हैं |तो यह भक्त बहुत ही कोमल भाव से मंत्रोचारण कर रहा था | प्रभुपाद ने कहा : “ जोर से! ” तो उसने शुरू किया : “कृष्ण कृष्ण …” प्रभुपाद ने कहा : “ मैंने कहा ना ,जोर से बोला !” कुछ समय बाद हमारे मित्र ने जोर जोर से चिल्लाना आरम्भ कर दिया | प्रभुपाद ने कहा : “अरे ! शोर मचाकर ,मुझे क्यूँ परेशां कर रहे हो ?” तो कभी कभी जब हम आध्यात्मिक गुरु की सलाह का पालन भी कर रहे हों तो भी हम कुछ गलतियाँ कर सकते हैं . आप धीरे से जाप करते हैं -वे कहते हैं “-जोर से” ,आप जोर से जाप करते हैं , वे कहते है “इसे रोको !” ऐसा होता क्यूँ है ? क्या गुरु मुर्ख हैं ?क्या वे नहीं जानते कि क्या ठीक है–.धीरे से बोलना या जोर से बोलना ?उन्हें बहुत अच्छी तरह से पता है |पर आप को पता नहीं है कि आपको क्या करना है , उसे अच्छी प्रकार से कैसे करना है | विभिन्न प्रकार के रोगियों के लिए वे अपनी सर्वोत्तम प्रतिभा का प्रयोग करते हैं |
इसलिए सर्वप्रथम तो हमें अपनी क्षमताओं और अपनी सीमाओं को समझना है | अत: समुदाय के आधारभूत नियमों कि हमें पूछताछ करनी है ,उन्हें समझना है ,उसके साथ ही दर्शन को भी समझना है | और जब हम उस मूल को समझ लेते हैं तब हमें उन्हें प्रयोग में भी लाना चाहिए| पर जब कभी भी आप कुछ अलग करना चाहते हैं तो आपको आशीर्वाद के लिए याचना करनी चाहिए | तो किसी सनक के तहद नहीं ,बल्कि संगरक्षण के तहद , अनुग्रह के तहद हो |
जब तक आप पूर्ण रूप से विश्वास नहीं करते ,तब तक आप समझना चाहते हैं ” क्यों होता है ” पर जब हमें पूर्ण विश्वास होता है ,तब हम यह विश्वास भी कर सकते हैं कि जो कुछ भी मुझे ईश्वर या मास्टर से मिल रहा है ,वह मेरे लाभ के लिए है | और उसे अगर मैं अभी समझता नहीं भी हूँ तो बाद में यह मुझे स्पष्ट हो जाएगा |
पर हर उस चीज़ को ,जो ऊपर से आ रही है ,स्वीकार करना ,काफी खतरनाक है | तब क्या होगा ,अगर वे मुझे धोखा देते हैं?क्या होगा अगर मैं कट्टरपंथी हूँ ,अंध अनुयायी हूँ और अगर मैं कुछ गलत करता हूँ ? पर मैं सोचता हूँ कि एक सच्चा मास्टर कभी भी अपने आसपास प्रेतों की उपस्तिथि से संतुष्ट होगा | हम जरूर पूछताछ कर सकते हैं , क्यूँ नहीं ? क्यूंकि यदि हमें ज्यादा स्पष्टीकरण की आवश्यकता है ,तो हमें उसे पूछना ही चाहिए | किन्तु यदि मुझे पूरा विश्वास है, तो मैं कह सकता हूँ “हाँ “..उस केस में भी ,जहाँ मुझे कुछ भी समझ में नहीं आता है | परन्तु पहले ही ,हर बार यह साबित हो चुका है कि ऊपर से जो कुछ भी मिलता है वह मेरे वस्तुत: मेरे लाभ के लिए ही था — इस विश्वास के आधार पर मैं अगले कदम पर भी “हाँ “कह सकता हूँ |
पर इस भावना के साथ कि हमें अपना पूरा ध्यान लगाना चाहिए ,कि हमें अपनी समस्त क्षमताओं से लगना चाहिए ,मैं पूरी तरह से सहमत हूँ कि पूछताछ तथा समझ और विश्लेषण , ये सब भी सेवा में समर्पित होने चाहिए | यह भूलिए मत कि जब श्रीला श्रीधर महाराज ने गोड़िया मठ और अपने भावी मास्टर और संस्था के बारे में सोचा तो उन्होंने कहा ,” वे जो कुछ भी कह रहे हैं ,वह मेरी समझ और बुद्धि की क्षमताओं से` बिलकुल परे है | अत: मैं अपनी पूरी बौद्धिक क्षमता को उस सत्य के सन्निकट पहुँचने में लगा दूंगा |” अत: मेरे विचार में बुद्धि का यही उचित प्रयोग है — विशेषज्ञों पर प्रश्न ना उठाएं जाएँ ,बल्कि रास्ता निकलने हेतु उनका प्रयोग हो | कृपया इस तथ्य को याद रखें ! यह अति महत्वपूर्ण है |
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